223 Mul Ramayan By Gita Press, Gorakhpur
223 वाल्मीकीयरामायणान्तर्गत मूलरामायण हिन्दी-अनुवादसहित
आजकल रामायण और भागवत-ये ही दो ग्रन्थ ऐसे हैं जो मोहमहासागर की भँवर में पड़े हुए प्राणियों को पार लगाने के लिये जहाज कहे जा सकते हैं। इन्हीं दो ग्रन्थ रत्नों ने राम-कृष्ण के नामों की महिमा बताकर अनन्त भगवद्भक्तों का महान् उपकार किया है और आज भी कर रहे हैं। वास्तव में रामायण और भागवत के रूप में भगवान् राम तथा कृष्ण ही अपने दर्शन एवं अमृतमय उपदेश से हमें कृतार्थ कर रहे हैं।
इन दोनों ग्रन्थरत्नों को हमारे लिये सुलभ करने का अधिक श्रेय प्रेमावतार देवर्षि नारदजी को है, इन्होंने ही महर्षि व्यास को सरस्वती के तट पर भागवत संहिता बनाने के लिये उत्साहित किया था और इन्होंने ही तमसानदी के [जिसे आजकल टॉस कहते हैं ] तटपर महर्षि वाल्मीकि को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम के जीवन का संक्षिप्त परिचय दिया था, जिसके आधार पर महर्षि ने रामायण की रचना की।
उस समय तक लौकिक संस्कृत में गद्य के सिवा पद्य मय रचना का सूत्रपात ही नहीं हुआ था; अतः यह नूतन पद्य मय ग्रन्थ आदि काव्य के नाम से विख्यात हुआ और इसके प्रणेता को आदिकवि की उपाधि मिली। इस आदि काव्य का प्रथम सर्ग ही मूल रामायण के नाम से प्रसिद्ध है, इसमें नारदजी के वचनों का ही संकलन है; यही सम्पूर्ण रामायण का बीज-सर्ग है।
देवर्षि नारद और महर्षि वाल्मीकि का यह संवाद उस समय हुआ था जब कि भगवान् राम वन से लौटकर अवध के राज्य सिंहासन पर आसीन हो चुके थे; इसका समर्थन मूलरामायण के ही ८९ से ९१ तक के श्लोकों के देखने से होता है, उदाहरणके लिये देखिये
रामः सीतामनुप्राप्य राज्यं पुनरवाप्तवान् ॥ ८९॥ “न पुत्रमरणं केचिद् द्रक्ष्यन्ति ॥ ९१॥
श्री रामचन्द्रजी ने सीता को पाने के अनन्तर पुनः अपना राज्य प्राप्त कर लिया है अब कोई अपने पुत्र को मृत्यु नहीं देखेंगे ।
यहाँ भूत और भविष्य काल क्रियाओं का प्रयोग होने से उक्त कथन की पुष्टि होती है।
इसके अतिरिक्त भगवान् राम ने अपने पुत्र लव और कुश के मुख से स्वयं भी रामायण-गान सुना था, अतः उनके समकालिक होने के कारण वाल्मीकीय रामायण को अन्य रामायणों की अपेक्षा अधिक आदरणीय और प्रामाणिक माना गया है। अनेकों प्रेमी भक्त इसके बीज-सर्ग- | मूलरामायण का नित्य पाठ किया करते हैं । परन्तु अर्थानुसन्धान पूर्वक पाठ अधिक उपयोगी होता है-इस विचार से संस्कृत न जानने वाले लोगों की सुविधा के लिये इसका अनुवाद किया गया है। इसमें पूरे सौ श्लोक हैं, प्रत्येक श्लोक का मूल के अनुसार साधारण अनुवाद किया गया है।
Reviews
There are no reviews yet.