श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कन्ध में गजेन्द्रमोक्ष की कथा है। द्वितीय अध्याय में ग्राह के साथ गजेन्द्र के युद्ध का वर्णन है, तृतीय अध्याय गजेन्द्र कृत भगवान्के स्तवन और गजेन्द्रमोक्ष का प्रसंग है और चतुर्थ अध्याय में गज-ग्राह के पूर्वजन्म का इतिहास है। श्रीमद्भागवत गजेन्द्रमोक्ष आख्यान के पाठ का माहात्म्य बतलाते हुए इसको स्वर्ग तथा यशदायक, कलियुग के समस्त पापों का नाशक, दुःस्वप्ननाशक और श्रेय:साधक कहा गया है। तृतीय अध्याय का स्तवन बहुत ही उपादेय है। इसकी भाषा और भाव सिद्धान्त के प्रतिपादक और बहुत ही मनोहर हैं । भाव के साथ स्तुति करते-करते मनुष्य तन्मय हो जाता है । महामना श्री मालवीय जी महाराज कहा करते थे कि गजेन्द्र कृत इस स्तवन का आर्तभावसे पाठ करने पर लौकिक-पारमार्थिक महान् संकटों और विघ्नों से छुटकारा मिल जाता है और निष्काम भाव होने पर अज्ञान के बन्धन से छूटकर पुरुष भगवान्को प्राप्त हो जाता है। स्वयं भगवान्का वचन है कि ‘जो रात्रिके शेषमें (ब्राह्ममुहूर्तके प्रारम्भमें) जागकर इस स्तोत्रके द्वारा मेरा स्तवन करते हैं, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल मति (अपनी स्मृति) प्रदान करता हूँ।’ और ‘अन्ते मतिः सा गतिः’ के अनुसार उसे निश्चय ही भगवान्की प्राप्ति हो जाती है तथा इस प्रकार वह सदाके लिये जन्म-मृत्यु के बन्धन से छूट जाता है। संस्कृत न जानने वाले भाई-बहिनों के लिये इस स्तवन का सुन्दर भावार्थ लिख दिया गया है।
Gajendra Moksha
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225 Gajendra Moksha (Sanskrit- Hindi) by Gita Press, Gorakhpur.
गजेन्द्र कृत इस स्तवन का आर्तभावसे पाठ करने पर लौकिक-पारमार्थिक महान् संकटों और विघ्नों से छुटकारा मिल जाता है और निष्काम भाव होने पर अज्ञान के बन्धन से छूटकर पुरुष भगवान्को प्राप्त हो जाता है। स्वयं भगवान्का वचन है कि ‘जो रात्रिके शेषमें (ब्राह्ममुहूर्तके प्रारम्भमें) जागकर इस स्तोत्रके द्वारा मेरा स्तवन करते हैं, उन्हें मैं मृत्यु के समय निर्मल मति (अपनी स्मृति) प्रदान करता हूँ।’ और ‘अन्ते मतिः सा गतिः’ के अनुसार उसे निश्चय ही भगवान्की प्राप्ति हो जाती है
Weight | 17.2 g |
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Dimensions | 6 × 4.2 cm |
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