पूजा में दीपक का महत्व
हर पूजा में दीपक का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि पूजा में यह भक्त की भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक होता है। इसलिए दीपक के बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं होती। नवरात्रि क्योंकि नौ दिनों की होती है इसलिए इसमें अखंड ज्योति जलाई जाती है अर्थात् यह पूरे 9 दिनों तक दिन-रात जलने वाला दीपक होता है।
अखंड ज्योति
ऐसी मान्यता है कि अगर संकल्प लेकर कलश स्थापना करते हुए अखंड ज्योति जलाई गई है तो व्रत की समाप्ति तक इसे बुझना नहीं चाहिए। यह पूजा में विघ्न का प्रतीक है और आने वाले समय में संकटों का संकेत देता है। इसलिए जब भी नवरात्रि का संकल्प लेकर अखंड दीपक जलाएं तो इसके कुछ नियमों का पालन अवश्य करें।
जलाने की विधि – अष्टदल
अखंड ज्योति का यह दीया कभी खाली जमीन पर नहीं रखा जाता। इसलिए चाहे आप चौकी या पटरे पर इसे जला रहे हों या देवी के सामने जमीन पर रख रहे हों, दीये को रखने के लिए अष्टदल अवश्य बनएं। यह अष्टदल आप गुलाल या रंगे हुए चावलों से बना सकते हैं। पीले या लाल चावलों से चित्रानुसार अष्टदल बना लें।
जलाने की विधि – बाती
अखंड ज्योति में जलाने वाला दीया कभी बुझना नहीं चाहिए, इसलिए इसकी बाती विशेष होती है। यह रक्षासूत्र से बनाई जाती है। सवा हाथ का रक्षासूत्र (पूजा में प्रयोग किया जानेवाला कच्चा सूत) लेकर उसे सावधानीपूर्वक बाती की तरह दीये के बीचोंबीच रखें।
जलाने की विधि – घी या तेल
किसी भी पूजा में दीपक के लिए शुद्ध घी का प्रयोग किया जाना अच्छा माना जाता है, लेकिन अगर घी ना जला सकें तो तिल या सरसों का तेल भी जलाया जा सकता है। बस इतना ध्यान रखें कि इनमें अन्य तेलों की मिलावट ना हो और ये पूरी तरह शुद्ध हों।
जलाने की विधि – दीपक का स्थान
आप घी या तेल का दीपक जला रहे हैं, इसी से देवी के सामने दीपक रखे जाने का स्थान तय होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर घी दीपक जलाया जाए, तो यह देवी की दाईं ओर रखा जाना चाहिए, लेकिन अगर दीपक तेल का है तो इसे बाईं ओर रखें।
जलाने की विधि – दीप प्रज्वलन
दीपक जलाने से पूर्व की सभी तैयारियां पूरी होने के पश्चात् अब इसे जलाए जाने की बारी आती है। इसके लिए भी एक खास नियम का पालन किया जाना आवश्यक है। सबसे पहले हाथ जोड़कर श्रीगणेश, माता दुर्गा और शिवजी का ध्यान करें।














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