Radha Krishna Rahasya of Pandit Thakura Prashad Sharma “Datta” Published by Sampurnanad Sanskrit University, Varanasi
UNIVERSITY-SILVERJUBILEE-GRANTHAMĀLĀ ( Vol. 54 ]
RĀDHĀKRSŅARAHASYA OF PANDITA THĀKURA PRASĀDA ŚARMĀ ‘DATTA’
FOREWORD BY PROF. BINDA PRASĀD MIŚRA VICE-CHANCELLOR
EDITED BY PROF. MĀTĀ PRASĀDA TRIPATHI
Ex-Head, Dept. of Ancient Indian History, Culture & Archeology Deen Dayal Upadhyay Gorakhpur University Gorakhpur
‘श्रीराधाकृष्णरहस्य’ एक विलक्षण काव्य कृति है, जिसके सम्पादक प्रो. माता प्रसाद त्रिपाठी हैं। प्रो. त्रिपाठी ने अपने संपादकीय में श्रीराधाकृष्ण के रहस्य पर अपना विमर्श किंचित् विस्तार से प्रस्तुत किया है। श्रीराधा-माधव का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है, क्योंकि वे एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं। अंतत: प्रेमा भक्ति में लीला रस के आस्वादन के लिए वे दो रूपों में प्रकट हुए हैं अठारहवीं शताब्दी के कृष्णदास कविराज की अभिव्यक्ति इस प्रकार है-
राधा पूर्ण शक्ति, कृष्ण पूर्ण शक्तिमान् दुइ वस्तु भेद नाहि, शास्त्रेर प्रमाण । राधाकृष्ण एके सदा, एकइ स्वरूप लीला रस आस्वादिते धरे दुइ रूप ।।
राधा और कृष्ण जहाँ कहीं हैं, वहाँ प्रेम की अद्वैतता है, समरसता है। वस्तुत: राधा-माधव में भाव की प्रगाढ़ता है, जो उन्हें एक किए रहती है। कहा जाता है कि राधे बिना कृष्ण आधे हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण (२.४८.३८) में राधा-कृष्ण की अभिन्नता का वर्णन है। कहा गया है
राधा भजति तं कृष्णं स च तां परस्परम् । उभयोः सर्वसाम्यं च सदा संतो वदन्ति च ।।
अर्थात् ‘राधा’ श्रीकृष्ण की आराधना करती हैं और श्रीकृष्ण राधा की। वे दोनों परस्पर आराध्य और आराधक हैं। संतों का कथन है कि उनमें सभी दृष्टियों से पूर्णता है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि ‘राधाकृष्णरहस्य’ जो श्रीमद्भागवत पुराण’ के ‘दशम स्कन्ध’ पर आधारित है, श्रीकृष्ण की बाल-लीला के ब्याज से परार्थ और परमार्थ बोध का परिचायक है।
राधाकृष्णरहस्य के प्रणेता पं. ठाकुर प्रसाद शर्मा दत्त ने निवेदन भाव से पुस्तक प्रकाशन पर जो भाव प्रकट किया था, वह है
अविकल-भक्तवत्सल श्रीकृष्णचन्द्र आनंदकंद की असीम अनुकम्पा से मेरे हृदय श्रीकृष्ण प्रेम ने उथल-पुथल मचा दी, रहा न गया अत: उन्हीं के चरण कमलों का ध्यान धर छन्दोबद्ध रूपी राधाकृष्णरहस्य नामक ग्रन्थ लिखने को बैठ गया। अस्तु घनश्याम के प्रेम में मग्न होकर श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध की कथा संक्षेप में पूर्ण हुई। इसके पूर्व इस प्रकार की कई पुस्तकें प्रचलित हो चुकी हैं किन्तु यह पुस्तक अपनी रचना में अपूर्व है। मैंने यथासम्भव बहुत से विषयों का इस ग्रन्थ में समावेश किया है। इस ग्रन्थ में श्रीकृष्ण बाललीला तथा गोपियों का प्रेम, कंस की कुनीति का सुनीति में परिवर्तन विशेष है। हमारे वर्तमान श्री राजराजेश्वर महाराज साहब ने जो कि श्रीकृष्ण जी के अनन्य भक्त तथा कविता-प्रेमी हैं; मुझे बड़ा प्रोत्साहन दिया है। श्रीकृष्ण प्रेमीजन यदि प्रेम से इस ग्रन्थ को अपनाएँगे तो मुझे पूर्ण आशा है कि उनके स्वार्थ व परमार्थ दोनों पूर्ण होंगे। मेरा मन अब भी श्रीकृष्ण चरणामृतरूपी कथा पान करते-करते तृप्त नहीं होता। अत: मैं अब भी अहर्निश जगदाधार श्री राधारमण के प्रेम में मग्न हूँ।
राधाकृष्णरहस्य
ब्रजभाषा एवं संस्कृत में छन्दोबद्ध काव्यकृति राधाकृष्णरहस्य का प्रथम संस्करण प्रकाश में आया था फतेहपुर नवीनगर (जनपद सीतापुर) से सन् १९४२ ई. में। इस कृति के यशस्वी प्रणेता थे आचार्य पण्डित ठाकुर प्रसाद शर्मा ‘दत्त’।
विषयानुक्रमणिका
राधा-कृष्ण रहस्य
स्तुति
१. धरा की गुहार
२. देवकी विवाह तथा श्रीकृष्ण-जन्म
३. किशोरी तथा श्रीकृष्णजी का जन्म
४. श्रीकृष्ण-बाल-लीला-वर्णन
५. गोपी-स्तुति
६. चीरहरण-लीला-वर्णन
७. संक्षेपत: श्लोकबद्ध चीरहरण लीला
८. इन्द्र-मान-मर्दन
९. रासलीला
१०. मथुरा से कृष्ण बलभद्र को लाने के लिए अक्रूर को कंस से समझाया जाना और अक्रूर का गोकुल जाना को
११. ब्रजवासियों के शोक का वर्णन
१२. यशोदा का विलाप
१३. गोपी-विलाप-वर्णन
१४. श्रीकृष्णजी का महादेवजी के धनुष को तोड़ना
१५. दर्जी के मिलने की कथा
१६. श्रीकृष्ण भगवान् से कुबरी के मिलने की कथा १७. कुवलयापीड़ हाथी को मारने की कथा
१८. मुष्टिक तथा चाणूर का वध
१९. कंसासुर-बध
२०. वसुदेव देवकी को जेल से छुड़वाकर उनसे मिलना
२१. श्रीकृष्णजी का कुबरी के घर जाना २२. नन्दजी का वृन्दावन को लौटा देना
२३. श्रीकृष्ण भगवान के न आने पर गोपी-विरह वर्णन २४. फुटकर श्लोक गीत इत्यादिक
२५. स्फुट भजन
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