109 SriGoswamiTulsidasJiVirchit Ramagya – Prashan ( Bhav arth Sahit) with Hindi Translation by Gita Press, Gorakhpur
कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने परिचित गंगाराम ज्योतिषी के लिये इस रामाज्ञा-प्रश्न की रचना की थी। गंगाराम ज्योतिषी काशी में प्रह्लादघाट पर रहते थे। वे प्रतिदिन सायंकाल श्रीगोस्वामीजी के साथ ही संध्या करने गंगातट पर जाया करते थे। एक दिन गोस्वामी जी संध्या-समय उनके द्वार पर आये तो गंगारामजी ने कहा-‘आप पधारें, मैं आज गंगा-किनारे नहीं जा सकूँगा। गोस्वामीजीने पूछा-‘आप बहुत उदास दीखते हैं, कारण क्या है?’
ज्योतिषीजी ने बतलाया-‘राजघाटपर जो गढ़बार-वंशीय नरेश हैं,* उनके राजकुमार आखेट के लिये गये थे, किन्तु लौटे नहीं। समाचार मिला है कि आखेट में जो लोग गये थे, उनमें से एक को बाघ ने मार दिया है। राजा ने मुझे आज बुलाया था। मुझसे पूछा गया कि उनका पुत्र सकुशल है या नहीं, किन्तु यह बात राजाओं की ठहरी, कहा गया है कि उत्तर ठीक निकला तो भारी पुरस्कार मिलेगा अन्यथा प्राण दण्ड दिया जायगा। मैं एक दिन का समय माँगकर घर आ गया हूँ, किन्तु मेरा ज्योतिष-ज्ञान इतना नहीं कि निश्चयात्मक उत्तर दे सकूँ। पता नहीं कल क्या होगा। दुःखी ब्राह्मण पर गोस्वामी जी को दया आ गयी । उन्होंने कहा-‘आप चिन्ता न करें। श्रीरघुनाथ जी सब मंगल करेंगे। ‘
आश्वासन मिलने पर गंगाराम जी गोस्वामीजी के साथ संध्या करने गये। संध्या करके लौटने पर गोस्वामी जी यह ग्रन्थ लिखने बैठ गये। उस समय उनके पास स्याही नहीं थी। कत्था घोलकर सरकण्डे की कलमसे ६ घंटे में यह ग्रन्थ गोस्वामी जी ने लिखा और गंगारामजीको दे दिया।
दूसरे दिन ज्योतिषी गंगाराम जी राजा के समीप गये। ग्रन्थ से शकुन देखकर उन्होंने बता दिया—’राजकुमार सकुशल हैं।’
राजकुमार सकुशल थे। उनके किसी साथी को बाघ ने मारा था, किन्तु राजकुमार के लौटने तक राजा ने गंगाराम को बन्दी गृह में बन्द रखा। जब राजकुमार घर लौट आये, तब राजा ने ज्योतिषी गंगारामको कारागार से छोड़ा, क्षमा माँगी और बहुत अधिक सम्पत्ति दी। वह सब धन गंगारामजी ने गोस्वामीजीके चरणों में लाकर रख दिया। गोस्वामी जी को धन का क्या करना था, किन्तु गंगाराम का बहुत अधिक आग्रह देखकर उनके सन्तोष के लिये दस हजार रुपये उसमें से लेकर उनसे हनुमान्जी के दस मन्दिर गोस्वामीजी ने बनवाये। उन मन्दिरों में दक्षिणाभिमुख हनुमान्जीकी मूर्तियाँ हैं।
यह ग्रन्थ सात सर्ग में समाप्त हुआ है। प्रत्येक सर्ग में सात सात सप्तक हैं और प्रत्येक सप्तक में सात-सात दोहे हैं। इसमें श्रीरामचरितमानस की कथा वर्णित है; किन्तु क्रम भिन्न हैं । प्रथम सर्ग तथा चतुर्थ सर्ग में बालकाण्ड की कथा है। द्वितीय सर्ग में अयोध्याकाण्ड तथा कुछ अरण्यकाण्ड की भी। तृतीय र्में अरण्यकाण्ड तथा किष्किन्धाकाण्ड की कथा है। पंचम सर्ग में सुन्दरकाण्ड तथा लंकाकाण्ड की, षष्ठ सर्ग में राज्याभिषेक की कथा तथा कुछ अन्य कथाएँ हैं। सप्तम सर्ग में स्फुट दोहे हैं और शकुन देखनेकी विधि है।
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