हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण विशेषता है शंख ध्वनि
किसी भी धार्मिक कृत्य के दौरान शंख ध्वनि उत्पन्न करना हिंदू धर्म की एक बड़ी और महत्वपूर्ण विशेषता है। शताब्दियों से प्रचलित इस धार्मिक विधि को हर पूजा-पाठ और अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों के दौरान निश्चित रूप से अपनाया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि कब और कितनी बार बजाया जाता है शंख? आज हम आपको इस बेहद प्रचलित धार्मिक कृत्य के उन बातों से रूबरू करवाते हैं जिन्हें शायद आप जरूर जानना चाहेंगे:
तीन बार की जाती है शंख ध्वनि
पूजा आरंभ करने के पूर्व तीन बार शंख बजाने से वातावरण से सभी प्रकार की अशुद्धियां दूर होती हैं तथा नकारात्मक ऊर्जा क्षय हो जाती है। शंख ध्वनि से देवता आकर्षित होते हैं तथा मन को भी शांति मिलती है। वस्तुतः शंख ध्वनि मस्तिष्क में सत्व तत्व के उदय में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त शंख ध्वनि से पूजा की विविध वस्तुओं में चैतन्यता जाग्रत होती है ताकि पूजा सार्थक हो सके।
आरती के दौरान भी शंख बजाने का प्रावधान
कोई भी पूजा आरती के बिना पूर्ण नहीं मानी जाती तथा आरती के अंत में भी शंख ध्वनि आवश्यक है। पूजा स्थल पर विविध देवी-देवताओं या प्राकृतिक शक्तियों की ऊर्जा का प्रवाह निर्बाध रूप से हो सके तथा रज-तम का प्रभाव मंद होकर सत् तत्व की प्रधानता स्थापित होना आवश्यक है। इसीलिए पूजा के अंत में भी आरती के दौरान शंख बजाने का प्रावधान है।
ग्रीवा ऊपर कर ही क्यों बजाते हैं शंख?
शंख बजाते समय व्यक्ति की ग्रीवा ऊपर की ओर(भगवान के सामने) होनी चाहिए साथ ही उसे पूर्ण रूप से ध्यानमग्न अवस्था में स्थित हो जाना चाहिए। इस दौरान व्यक्ति के नेत्र मुंदे होने चाहिए तथा उसकी भावना पूर्ण-रूपेण ईश्वर भक्ति में निमग्न होनी चाहिए।
सुषुम्ना नाड़ी को जाग्रत करती है शंख ध्वनि
शंख बजाने वाले व्यक्ति की ऐसी अवस्था उसकी सुषुम्ना नाड़ी को जाग्रत कर देती है। यह व्यक्ति के भीतर मौजूद अग्नि व वायु तत्वों के रज-तम गुणों को संतुलित कर उसकी सत् अवस्था को प्रधानता प्रदान करती है। इस प्रकार शंख ध्वनि के कारण देवों के रक्षक व विनाशक गुणों का आवश्यकतानुसार जागरण होता है।
शंख ध्वनि के दौरान क्यों बंद रखते हैं आंख
इस दौरान नेत्र मूंदने से ईश्वर की शक्ति का अप्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है। इसीलिए पूजा के दौरान उपस्थित सभी श्रद्धालु स्वतः अपनी आंखें बंद कर लेते हैं।
कैसे बजाएं शंख?
शंख बजाते के लिए श्वास की गति पूर्ण नियंत्रण में होनी चाहिए। जहां तक हो सके गहराई से सांस लेकर फेफड़े को पूरी तरह भर लीजिए तथा बिना सांस के व्यतिक्रम के शंख ध्वनि पैदा कीजिए तभी यह फलदायक होगा। इस प्रकार से पैदा की गई शंख ध्वनि नकारात्मक ऊर्जा का विनाश कर व्यक्ति को शाश्वत ऊर्जा की ओर अभिमुख करने में सक्षम होती है।
शंख ध्वनि की तीव्रता धीरे-धीरे बढाएं
शंख बजाते समय इसे बेहद कम तीव्रता से आरंभ करना सही होता है। इसे धीरे-धीरे क्रमागत रूप से प्रखर ध्वनि में तब्दील करना चाहिए ताकि शुरू से आखिर तक व्यक्ति की ऊर्जा का क्रम निश्चित रहे।
शंख ध्वनि के दौरान नकारात्मक ऊर्जा का होता है प्रत्यक्षीकरण
शंख ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा के बीच “हलचल” जन्म लेती है। इससे रज-तम तत्वों के बीच द्वंद पैदा होने लगता है तथा नकारात्मक ऊर्जा का विनाश आरंभ हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इसी कारण नकारात्मक ऊर्जा शंख ध्वनि को सहन नहीं कर पाती और जल कर नष्ट हो जाती है। तथापि कुछ बेहद शक्तिशाली नकारात्मक शक्तियां फिर भी बची रह जाती हैं जिससे मनुष्य को यही प्रक्रिया बार-बार दुहरानी पड़ती है।
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