2189 Shiv Puran Katha Saar ‘शिवमहापुराण-एक सिंहावलोकन’ by Gita Press, Gorakhpur
अठारह महापुराणों में शिवमहापुराणका विशेष गौरव है इस पुराणके श्रवण एवं पारायणकी सुदीर्थ परम्परा चली आ रही है। इसमें मुख्यरूपसे भगवान् सदाशिव एवं जगजननी माता पार्वतीकी लीला कथाओंका विस्तारसे प्रतिपादन हुआ है। भक्ति, ज्ञान, सदाचार, शौचाचार, उपासना तथा मानव जीवनके कल्याणकी अनेक उपयोगी बातें इसमें निरूपित हैं । कथाओंका तो यह आकर ग्रन्थ है। शिवज्ञान, शैवीदीक्षा तथा शैवागमकी अत्यन्त प्रौढ़ सामग्री इसमें विद्यमान है।
वर्तमानमें उपलब्ध शिवमहापुराणमें सात संहिताएँ हैं, पहली संहिताका नाम विद्येश्वरसंहिता है। दूसरी संहिता रुद्रसंहिता है, जो सृष्टिखण्ड, सतीखण्ड, पार्वतीखण्ड, कुमारखण्ड तथा युद्धखण्ड – इस प्रकारसे पाँच खण्डोंमें विभक्त है। तीसरी संहिता शतरुद्रसंहिता है, चौथी संहिता कोटिरुद्रसंहिता है, पाँचवीं संहिता उमासंहिता है, छठी संहिताका नाम कैलाससंहिता है और सातवीं संहिता वायवीय संहिताके नामसे कही गयी है, जो दो भागोंमें विभक्त है। इस प्रकार अत्यन्त विस्तृत इस पुराणमें लगभग चौबीस हजार श्लोक हैं।
सम्पूर्ण शिवमहापुराण का कथासार तथा उस पुराण की विशेष-विशेष बातोंका सरल एवं रोचक शैलीमें निरूपण किया गया हैं तथा कथासार को एक पुस्तिकाके रूप में अलगसे भी प्रकाशित किया गया है |
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