1954 Shiv Smaran ( Ten inspiration story of Ten Names of Lord Shiva) by Gita Press, Gorakhpur
आदिदेव भगवान् शिव की अद्भुत लीलाएँ उनके त्याग, वैराग्य, तितिक्षा तथा भक्तवत्सलता आदि विशेषताओं से ओत-प्रोत हैं। इसी प्रकार उनके अनेकानेक स्वरूप भी बड़े विचित्र हैं, जिनमें गूढ़ रहस्य छिपे हैं। भगवान् सदाशिव के इन्हीं गुणों और स्वरूपों के आधार पर उनके अनेक नाम प्रसिद्ध हैं, जिनमें से दस नामों (शिव, पुरारि, दक्षिणामूर्ति, पंचवक्त्र, आशुतोष, अर्धनारीश्वर, नीललोहित, नटराज, प्रलयंकर एवं पशुपति)-को कल्याण के प्रसिद्ध लेखक गोलोकवासी श्री सुदर्शन सिंह जी ‘चक्र’ ने लालित्यपूर्ण वार्तालाप शैली में सुबोध बनाकर व्याख्यायित किया था। ये कथा-निबन्ध बहुत वर्ष पूर्व सर्वप्रथम कल्याण में प्रकाशित हुए थे। सम्प्रति वे पाठकों को अनुपलब्ध हैं, सो इन्हें पुस्तक रूपमें प्रकाशित करने का आग्रह होता रहता है। इसी को ध्यान में रखते हुए गीता प्रेस द्वारा इन्हें संकलित कर पुस्तकाकार प्रकाशित किया जा रहा है ।
भगवान् शिव के श्रद्धालु पाठकों को इसे पढ़कर आनन्द तथा प्रेरणा मिलेगी और वे भगवान् सदाशिव के विविध स्वरूपों को हृदयंगम कर सकेंगे।
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