Kashi Khand in SkandPuran is all about Kashi History, the importance and existence of temples, the importance of Manikarnika, the vastness of Kashi, and everything you have the curiosity to know about Kashi and its history. It’s all about Lord Shiva’s only living city of the world.
Translatior and Comments by : S.N.Khandelwal
Publisher: Choukhamba Prakashan, Kashi
इस प्रस्तुत खण्ड की आदर्शप्रति स्कन्दपुराण का “काशीखण्ड” है। नारदपुराण के पूर्वभागस्थ बृहदुपाख्यान के चतुर्थ पाद की १०४ अध्याय में वर्णित “काशीखण्ड” की विषयानुक्रमणिका सेवा में प्रस्तुत है।
इसके अनन्तर चतुर्थ अनुत्तम, सर्वातिश्रेष्ठ, काशीखण्ड है। उसमें वर्ण्य विषयों की अनुक्रमणिका यह है। इसमें सर्वप्रथम विन्ध्य और नारद का सम्वाद वर्णित है।
सत्यलोक का प्रभाव तथा अगस्त्य के आश्रम में देवगण का समागम, पतिव्रता का चरित्र एवं तीर्थ चर्चा की प्रशंसा कही गई है। आगे सप्तपुरी की आख्या संयमिनीका निरूपण शिवशर्मा की सूर्य, इन्द्र और अग्निलोक की प्राप्ति अग्नि का आविर्भाव क्रव्य से वरुण की उत्पत्ति गन्धवती अलकापुरी और ईश्वरी का उद्भव, चन्द्रलोक, नक्षत्रलोक, बुधलोक, मंगललोक, सूर्यलोक, भूर्लोक तथा सप्तर्षि, ध्रुवलोक तथा तपोलोक का वर्णन। ध्रुवुलोक की पुण्यकथा, सत्यलोक का निरीक्षण स्कन्द स्वामी (कार्तिकेय) और अगस्त्य का वार्तालाप मणिकर्णिका की समुत्पत्ति, गङ्गा का प्रभाव एवं गङ्गा का सहस्रनाम (हजार नाम) फिर वाराणसी की प्रशंसा एवं भैरव का आविर्भाव है। आगे दण्डपाणि एवं ज्ञानवापी का उद्भव तब कलावती का आख्यान तथा सदाचार का निरूपण आगे ब्रह्मचारी का आख्यान फिर स्त्री के लक्षण, कृत्य और अकृत्य का निरूपण है। अविमुक्तेश्वर का वर्णन, गृहस्थ और योगिलोगों के धर्म के अनन्तर काल ज्ञान का प्रतिपादन है।
दिवोदास राजा की पुण्य कथा एवं काशी का वर्णन, योगीचर्चा, लोलार्क के बाद साम्बार्क की कथा,
द्रुपदार्क, तार्क्ष्यार्क अरुणार्क का उदय दशाश्वमेध तीर्थ का वर्णन मन्दराचल से गणों का समागमन। पिशाचर्मोचना ख्यान बाद गणेश का प्रेषण (भिजवाना) पृथ्वी में माया गणपति का प्रादुर्भाव, विष्णुमाया का प्रपञ्च और दिवोदास का मोक्ष। आगे पञ्चनदोत्पत्ति और बिन्दुमाधव का आविर्भाव फिर वैष्णव तीर्थ की आख्या शङ्कर भगवान् का काशी में समागमन, जैगीषव्य मुनि के साथ सम्वाद। महेश का ज्येष्ठेशाख्यान और क्षेत्राख्यान, कन्दुकेश व्याघ्रेश्वर का उद्भव शैलेश, रत्नेश और कृत्तिवास का आविर्भाव देवगण का अधिष्ठान | दुर्गासुर का पराक्रम (वीरता), दुर्गा की विजय और ओङ्कारेश का वर्णन है फिर ओङ्कार का माहात्म्य तथा त्रिलोचन समुद्भव वर्णन है।
केदारेश्वर का आख्यान धर्मेशकथा विश्वभुजोद्भव कथा है। वीरेश्वर का समाख्यान तथा गङ्गामाहात्म्य का विशिष्ट वर्णन है।
विश्वकर्मेश की महिमा दक्षयज्ञ का उद्भव, सतीश और अमृतेशादि का वर्णन, पाराशर व्यास का भुजस्तम्भ। क्षेत्रतीर्थकदम्ब और मुक्तिमण्डप की कथा विश्वेश विभव तथा यात्रा का परिक्रमा प्रदक्षिणा का सविस्तर वर्णन है।
Reviews
There are no reviews yet.