नीलकंठ वर्णी (स्वामीनारायण) के नाम से पुरे विश्व में पूजे जाते है | लेकिन नीलकंठ वर्णी कौन है? या नीलकंठ वर्णी की कथा क्या है इस बारे में बहुत ही कम लोग जानते है | नीलकंठ वर्णी जिनको स्वामी नारायण के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 3 अप्रैल 1781 चैत्र शुक्ल9 विक्रम संवत 1837 को अयोध्या के पास गोंडा जिले के छपिया गांव में उनका जन्म हुआ।
रामनवमी होने के कारण संपूर्ण अयोध्या में उत्सव का माहौल था। नीलकंठ वर्णी (neelkanth varni ) के पिता का नाम श्री हरि प्रसाद व माता का नाम भक्ति देवी था। उन्होंने उस बालक का नाम घनश्याम रखा। बालक के हाथों में पद्म पैर में वज्र का निशान, उधर्वरेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर ज्योतिषियों ने यह भविष्यवाणी की, कि यह बालक लाखों लोगों के जीवन को सही दिशा देगा।
नीलकंठ वर्णी जी ने अपनी भविष्यवाणी को सही साबित भी किया | नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण के नाम से भी जाना जाता है | जीने आज कई मंदिर है और उनके अनुयायी पूरी शरधा के साथ इनके आदर्शो का पालन करते है |
नीलकंठ वर्णी ने छोटी अवस्था में ही अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया। जब नीलकंठ वर्णी मात्र 11 वर्ष के थे, तो उनकी माता व पिता जी का देहांत हो गया। इसके कुछ समय बाद लोक कल्याण हेतु उन्होंने अपने गृह का त्याग किया और अगले 7 साल तक संपूर्ण देश की परिक्रमा की। घनश्याम को नीलकंठ वर्णी (neelkanth varni ) के नाम से जाना जाने लगा। इस यात्रा के दौरान उन्होंने गोपालयोगी से अष्टांग योग को सीखा। उत्तर भारत में हिमालय, दक्षिण दिशा में कांची, श्रीरंगपुर, रामेश्वरम आदि जगह पर गए।
इसके बाद में पंढरपुर व नासिक होते हुए गुजरात आए। नीलकंठ वर्णी मांगरोल के पास लॉज नामक गांव में पहुंचे। वहां उनका परिचय स्वामी मुक्तानंद से हुआ जो, कि स्वामी रामानंद के शिष्य थे। नीलकंठ वर्णी, स्वामी रामानंद की दर्शन को उत्सुक थे।
Nilkanth Varni
On his epic journey, Ghanshyam took the name, Nilkanth Varni. Varni means Brahmachari. On his way to the Himalayas, he met a number of saints. Ghanshyam was not concerned about walking barefooted on stony, hot, or cold paths. He was not afraid of snakes or wild animals such as tigers. At times he had nothing to eat and even passed several days without drinking water. In the Himalayas, one of the amazements that Nilkanth Varni caused was that at a particular moment 900,000 Yogis got his darshan.
During his travels, Nilkanth Varni met a number of yogis. However, when he met a great yogi called Gopal Yogi he stayed with him for one year. The Yogi taught him Ashtang Yoga. Gopal Yogi was so pleased with Nilkanth he stated that his life’s achievement was fulfilled by teaching Nilkanth.
After the death of Gopal Yogi, Nilkanth Varni headed east to a village near Kamakshidevi in Assam where he met a Mantracharya named Pibak. Pibak was known for his black magic. As Pibak had heard of Nilkanth’s great adventures, he tried his utmost to intimidate and subdue him by means of various kinds of Abhicharprayoga i.e. invoking evil spirits. Having shown his powers he ordered Nilkanth Varni to be his disciple and threatened to destroy him if he disobeyed. Nevertheless, Nilkanth Varni instead of being afraid challenged him. Nilkanth Varni proved his superiority and eventually freed Pibak from the bonds of magical rituals. Nilkanth Varni initiated him to the path of bhakti. Nilkanth Varni then proceeded to Jagannath Puri. From there he entered Gujarat via Pandharpur, Pune, and Nasik. After visiting places of pilgrimage at the banks of the Narmada and Tapi rivers he came to Dakor. He then entered Saurashtra and proceeded to Dwarika.
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