574 Yogvashisth (brief) योगवाशिष्ठ (संक्षिप्त) by Gita Press, Gorakhpur
भारतीय तत्त्व ज्ञान के अनुसंधानकर्ता जिज्ञासुओं एवं साधकों के लिये योगवासिष्ठ अनुपम ग्रन्धरत्न है। यह ग्रन्थ विश्वसाहित्य में ज्ञानात्मक सूक्ष्मविचार तथा तत्त्वनिरूपक गन्थों में सर्वश्रेष्ठ है । इसमें आत्मा- परमात्मा जीव जगत, बन्धन मोक्ष आदि दुरूह विषयों का विभिन्न कथानकों तथा दृष्टान्तों के द्वारा बड़ा ही सुन्दर विवेचन किया गया है। भगवान् श्रीराम को ज्ञानस्वरूप महर्षि वसिष्ठ के द्वारा सुनायी गयी तत्त्वज्ञान की यह सर्वोत्कृष्ट रचना है। यह ग्रन्थ महारामायण, वसिष्ठ रामायण आदि नामों से भी विख्यात है। इस ग्रन्थ के विषय में महर्षि वसिष्ठ ने स्वयं कहा है कि ‘संसार-सर्प के विष से विकल तथा विषय विषधिका से पीड़ित प्राणियों के लिये योगवासिष्ठ परम पवित्र अमोघ मन्त्र है।
योगवासिष्ठ अजातवाद या केवल व्रह्ावाद का ग्रन्थ है। इसके सिद्धान्तानुसार एकमात्र चेतन तत्त्व परब्रह्म के अतिरिक्त कोई सत्ता नहीं है। जैसे समुद्र में असंख्य तरङ्ें उठती और मिटती रहती हैं, वे समुद्र से भिन्न नहीं हैं, उसी प्रकार नित्य सच्चिदानन्द परमात्मतत्त्व समुद्र में नाना प्रकार के अनन्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश की लीला-तरङे दीखती रहती हैं। अहंकार का नाश होते ही केवल एक ब्रह्म चैतन्य ही रह जाता है। इसी एक तत्त्व का विभिन्न आख्यानों, इतिहासों और कथाओं के द्वारा इस ग्रन्थ में प्रतिपादन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें योगसिद्धियों, योग के साधनों एवं योग-भूमिकाओं का भी अत्यन्त ललित वर्णन किया गया है। ज्ञानपरक ग्रन्थ होनेके बाद भी इसमें भक्ति और कर्म की आवश्यकता पर बल दिया गया है। सदाचार और सत्संग की महत्ता का भी स्थान-स्थान पर प्रतिपादन है। योगवासिष्ठ का शिखिध्वज- चूडाला-संवाद नारी को ज्ञान की सर्वोत्तम महिमा से मण्डित करता है।
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