Shooltankkeshwar Mahadev Temple, Kaithi, Varanasi
काशी से लगभग 15 किलोमीटर दूर माधवपुर में स्थित शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर ।
इस मंदिर में मौजूद विशालकाय शिवलिंग दूर दराज से आने वाले भक्तों के सभी कष्टों का निवारण करता है लेकिन काशी के दक्षिण में बसा यह इलाका इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि काशी में उत्तरवाहिनी होकर बहने वाली गंगा इसी शूल टंकेश्वर मंदिर के पास घाटों से उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश कर रही ऐसा क्यों और क्या वजह है जो गंगा काशी में हुई उत्तरवाहिनी उसी से जुड़ी है इस मंदिर की पूरी कहानी।
शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर दक्षिण में जिस स्थान से गंगा उत्तरवाहिनी होकर काशी में प्रवेश करती हैं वहां है शूलटंकेश्वर का मंदिर।
मंदिर के पुजारी बताते हैं इस मंदिर का नाम पहले माधव ऋषि के नामपर माधवेश्वर महादेव था। शिव की आराधना के लिए उन्होंने ही इस लिंग की स्थापना की थी। यह बात गंगावतरण से पूर्व की है। गंगा अवतरण के समय भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपने त्रिशूल से गंगा को रोक कर यह वचन लिया था कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी।साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस खींचा। तब यहां तपस्या करने वाले ऋषियों-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रखा।
आज से १० वर्ष पूर्व तक यह स्थान अत्यंत ही निर्जन और शांत हुआ करता था तथा यहाँ प्राकृतिक सौदर्य तथा ग्रामीण वातावरण की सुन्दर अनुभूति होती थी, पेड़ पौधे तथा मिटटी की सोंधी खुशबु , चिडियों की चहचाहट परम सुख देने वाली लगती थी | उसी के मध्य बाबा भोलेनाथ का दरबार बिना किसी आडम्बर के लगा रहता था | कुछ पल आँखे बंद कर के ध्यान लगाने से परम आनंद की प्राप्ति होती थी | गंगा घाट तक जाने के लिए भी मिटटी से चल कर ही जाना होता था | किन्तु आज आधुनिकता और व्यावसायिकरण के पीछे भागने के कारण इस जगह का प्राकृतिक सोंदर्य भी ख़त्म कर दिया गया |
दरअसल अब लोगो के अन्दर आस्था कम और मौज – मस्ती करने के लिए ठिकाना होना जरुरी है और इसी क्रम में इस मंदिर और स्थान का भी आधुनिकीकरण कर दिया गया |