काशीरहस्यम् (हिन्दी अनुवाद सहित) एवं सूक्ति रत्नावली हिन्दी व्याख्या सहित
सम्पादक : डॉ० श्याम बापट, आचार्य पूर्व विभागाध्यक्षः पुराणेतिहास विभागः सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
ग्रन्थ परिचय
स्कन्द पुराणीय ‘काशीखण्ड’ इस ग्रन्थ से जैसे काशी स्थित विभिन्न तीर्थों, देवालयों, वापी, कूप आदि के भूगोल एवं इतिहास इन दोनों के ज्ञान के साथ उनके आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व का परिचय प्राप्त होता है वैसे ही ‘काशी रहस्य’ के अनुशीलन से काशी से सम्बन्धित गूढ़ तत्त्वों रहस्यों का ज्ञान होता है। काशीरहस्य यह प्राचीन ब्रह्मवैवर्त का तृतीय खण्ड है ऐसा उसकी अध्याय के अन्त में दी गई पुष्पिका से ज्ञात होता है।
वर्तमान् ब्रह्मवैवर्त पुराण में केवल चार ही खण्ड है। यह उसके ‘खिलभाग’ के रूप में जाना जाता है। इस ग्रन्थ में २६ अध्याय एवं २७५२ श्लोक हैं। इसमें काशी को शुद्ध ब्रह्मरूप कहा है। प्रकाशमयी होने से स्वयं व्यापिका है और अन्य ६ मोक्षपुरिया व्याप्य है। इसलिये इसका स्थान सर्वोपरि है। इसमें शिव और विष्णु की पग पग पर एकता प्रदर्शित की गयी है। विष्णु से ही शिव शिवात्मिका काशी का पञ्चक्रोशात्मक लिङ्ग के रूप में प्रकट होने की बात कही है। इसमें अनेक आख्यानों के द्वारा ज्ञान, कर्म, भक्ति, योग, सत्सङ्ग और सद्गुरु की महिमा पर विशेष प्रकाश डाला गया है। काशी की पञ्चक्रोशी यात्रा का सविस्तर वर्णन इसी ग्रन्थ में उपलब्ध है। काशी में मरण से मुक्ति के वर्णन के साथ इसको विश्राम दिया गया है। इस पुस्तक में बहुत ही विस्तृत रूप में २६ अध्यायों का परिचय सूक्ति रत्नावली हिन्दी व्याख्या विस्तार से दी गयी है जो कि काशी के प्रति जिज्ञासु पाठकों के लिये एवं छात्रों के लिये भी अवश्य ही पठनीय एवं मननीय तथा उपयोगी सिद्ध होगी।
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