Shiv Aaradhana (Book) Gita Press शिव आराधना

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  • १. शिवप्रातःस्मरणस्तोत्रम्
  • २. द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्मरणम्
  • ३. द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रम्
  • ४. शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्
  • ५. विश्वनाथाष्टकम्
  • ६. रुद्राष्टकम्
  • ७. लिङ्गाष्टकम्
  • ८. शिवमानस-पूजा
  • ९. वेदसारशिवस्तवः
  • १०. शिवताण्डवस्तोत्रम्
  • ११. शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
  • १२. शिव-अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
  • १३. शिव-अष्टोत्तरशतनामावलिः
  • १४. शिवचालीसा-१
  • १५. शिवाष्टक
  • १६. शिवचालीसा-२
  • १७. शिवस्तुति
  • १८. शिव-वन्दना
  • १९. शिव-भजन
  • २०. शिव-आरती-१
  • २१. शिव-आरती-२

शास्त्रोंमें सर्वत्र भूतभावन भगवान् शिवकी अनन्त महिमाका प्रतिपादन हुआ है। ऋग्वेदमें महादेव शिवको समस्त विद्याओंका स्वामी तथा प्राणिमात्रका नियन्ता कहा गया है-‘ईशान: सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानाम् ॥’ शिवपुराण में भगवान् स्वयं कहते हैं

अहं शिवः शिवश्चायं त्वं चापि शिव एव हि।

सर्वं शिवमयं ब्रह्मन् शिवात् परं न किञ्चन ॥

‘हे ब्रह्मन्! मैं शिव हूँ, यह शिव है, तुम भी शिव ही हो, सब कुछ शिवमय है। शिवके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।’ परम तत्वज्ञ पितामह भीष्मने स्पष्ट शब्दोंमें कहा है-‘साक्षात् विष्णु के  अवतार श्रीकृष्णके अतिरिक्त मनुष्यमें सामर्थ्य नहीं कि वह भगवान् सदाशिवकी महिमाका वर्णन कर सकें |’ शास्त्रोंमें भगवान् शिवके सभी गुणोंकी अभिव्यक्ति भले ही असम्भव है, परंतु महर्षियों एवं भक्तोंने उनके गुणों एवं महिमाका यथासम्भव बड़ा सुन्दर गान किया है जो पुरुषार्थ चतुष्टयकी सिद्धिमें परम सहायक है। इसके गानसे हम सहज ही भगवान् सदाशिवकी प्रीतिका भाजन बन सकते हैं।

गीताप्रेसद्वारा ऐसी अनेकानेक स्तुतियोंका सानुवाद वृहद् संग्रह रत्नाकर’ प्रकाशित हो चुका है। शिवभक्तोंके विशेष आग्रहपर शिव स्तुतियोंका यह सुविधाजनक लघु संग्रह प्रकाशित किया जा रहा है आशा है, पाठक इससे लाभान्वित होंगे।