वैभव लक्ष्मी व्रत का संकल्प व नियम
श्री वैभव लक्ष्मी व्रत करने से पूर्व संकल्प लिया जाता है। यह संकल्प आप किसी मंदिर में या अपने घर में मौजूद ‘तुलसीजी’ के पौधे के समक्ष ले सकते हैं। आप सच्चे मन से मां लक्ष्मी का स्मरण कर इस प्रकार कहें -‘हे मां वैभव लक्ष्मी! आपकी जय हो ! हे मां ! मैं आपकी शरण में हूं। हर दर से निराश होकर मैं आपकी शरण में आई/आया हूं। मैं आपके…व्रतों का संकल्प लेता / लेती हूं, आप मेरी …मनोकामना पूर्ण करें। जय मां वैभव लक्ष्मी! ‘
- शास्त्रानुसार मां लक्ष्मी के व्रत के कुछ नियम इस प्रकार हैं मां वैभव लक्ष्मी का व्रत किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ करना चाहिए।
- संकल्प लेते समय 5, 11, 21, 31, 51 अथवा 101 व्रता का संकल्प लिया जाता है। यदि संकल्प अवधि में मानी गई मनौती पूर्ण हो जाए तो भी संकल्प किए गए व्रत अवश्य करने चाहिए व अंतिम शुक्रवार को मां वैभव लक्ष्मी के व्रतों का उद्यापन करना चाहिए।
- यदि संकल्प अवधि में मनोकामना पूर्ण न हो तो निराश न हों, पुन: संकल्प लेकर व्रत चालू रखें। इस अवधि में आपकी श्रद्धा-भक्ति व विश्वास में कमी नहीं आनी चाहिए।
- उद्यापन में सात कन्याओं को भोजन कराने का विधान है ।
- व्रतों के संकल्प की अवधि में यदि नारी रजस्वला हो जाए तो उसे शुक्रवार को व्रत नहीं करना चाहिए। इस प्रकार संकल्प अवधि में जितने शुक्रवार छुट जाएँ, उतने ही शुक्रवार आगे बढ़ा लेने चाहिए।,
- यह व्रत सुहागिनें, कुंवारी कन्याएं, पुरुष सभी रख सकते हैं। किन्तु यदि स्त्री विवाहित है तो पति-पत्नी को मिलकर यह व्रत करना चाहिए। इससे मां वैभव लक्ष्मी अति प्रसन्न होकर शीघ्र फल देती हैं। विधवाएं भी यदि चाहें तो व्रत कर सकती हैं, किसी प्रकार की मनाही नहीं है।
- व्रत बिल्कुल शुद्ध मन और विचारों से रखें। किसी प्रकार का छल-कपट या द्वेष भाव मन या विचारों में नहीं होगा चाहिए। कोई स्त्री यदि किसी कारणवश व्रत रखने में असमर्थ हो तो उसका पति व्रत रख सकता है।
- व्रत किसी लोभ-लालच के वशीभूत होकर नहीं, ऐसी भावना से करना चाहिए कि मुझे मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना है।
- माँ लक्ष्मी के आठ स्वरूप हैं, जिनके चित्र पुस्तक में दिए गए हैं। वैसे तो मां के हरेक स्वरूप को प्रणाम करना चाहिए, किन्तु पुस्तक में दिए ‘श्रीयंत्र’ को ही यदि भक्तगण प्रणाम कर लें तो समझें कि आपने मां लक्ष्मी के प्रत्येक स्वरूप को प्रणाम कर लिया।
- पूजन करते समय ‘श्रीयंत्र’ को एक चौकी पर स्थापित करें व पूजा के जल पात्र पर एक कटोरी रखकर उसमें सोने या चांदी की कोई चीज अवश्य रखें। तत्पश्चात् मां का स्मरण कर कथा प्रारम्भ करें
- उद्यापन में पूजी जाने वाली कन्याओं को श्री वैभव लक्ष्मी व्रत कथा की एक-एक पुस्तक प्रसाद स्वरूप अवश्य दें व उपस्थित भक्तजनों में भी पुस्तकें वितरित करें। मित्र-संबंधियों को भी प्रसाद के साथ पुस्तक की प्रति दें।
- इस व्रत के द्वारा किसी को हानि पहुंचाने की धारणा मन में नहीं होनी चाहिए। यह व्रत अपनी आर्थिक दशा सुधारने व सुख-समृद्धि के उद्देश्य से करें, इसमें भी आपका ध्येय मां को प्रसन्न करना होना चाहिए, न कि लालच।
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