Adbhuta Ramayana in Sanskrit and Hindi Translation. Written by Mahrishi Valmiki Edited and Elaborated by Pt. Harihar Prashad Tripathi Published by Chowkhamba, Kashi
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि रचित यह अद्भुत रामायण अपने आप में भी अद्भुत है जिससे इसके नाम की सार्थकता भी प्रकट होती है इसके कथानक अत्यन्त विस्मयकारी तथा रोमहर्षक है ये कथानक सवा सुलभ न होने के कारण धर्मप्राण जनता इसके परिज्ञान से चित रह जाती है।
वस्तुत: ‘रामायण शतकोटि अपारा’ के अनुसार अनेक रामायणों का वर्णन किया गया है। इस भूतल पर रामायणों की संख्या पचीस सौ कही गयी है, शेष सभी ब्रह्मलोक में अवस्थित है। परन्तु अन्वेषण करने पर अब कुछ ही रामायण प्राप्य है। अन्य सभी लुप्त हो चुके हैं।
इस अद्भुत रामायण के अन्तर्गत श्रीराम और सीता में एकता का प्रतिपादन किया गया है। यथार्थत: इसमें आद्याशक्ति भगवती सीता-शक्ति की प्रधानता दर्शायी गयी है।
जब श्रीरामचन्द्र लंकापति दशानन रावण का वध कर अवध में लौटे तो वे सीता सहित राज्यारूब हुए। राज्यारोहण के पश्चात् उनके दरबार में अनेक मुनिगणों ने आकर उन्हें साधुवाद दिया तथा सीता के प्रति वनवास काल में उनके द्वारा घोर कष्टों के सहन करने पर अपनी संवेदना प्रकट की।
तब उस मुनिमण्डली के समक्ष सीताजी ने निरभिमान भाव से सहस्रमुख रावण के ऐश्वर्य तथा पराक्रम का विशद वर्णन किया जिसे सुनकर श्रीराम क्रोधावेश में भर उठे और उसके वध के निमित सत्रद्ध हुए।
वह सहस्रमुखी रावण पुष्कर द्वीप (सप्तद्वीपों में से एक द्वीप जो इस प्रकार कहा गया है- जम्बू, कुश, क्रौच, शाल्मलि, शाक, प्लक्ष एवं पुष्कर) में रहता था। अतएव श्रीराम अपनी सेना, महर्षियों, भ्राताओं को साथ लेकर सीता सहित सहस्रमुख रावण से युद्ध के निमित्त चल पड़े। वहाँ पहुँचने पर रावण के साथ उनका युद्ध हुआ। युद्धकाल में रावण द्वारा शक्ति प्रहार किये जाने के फलस्वरूप श्रीराम अपने पुष्पक विमान में ही अचेत हो गये।
इस कल्पनातीत घटना को देखकर देवी सीता के धैर्य का बाँध फूट पड़ा। उन्होंने अपना काली का रूप धारण कर समस्त सेनाओं के सहित रावण को मृत्यु की गोद में सुला दिया। तत्पश्चात् ब्रह्मादि देवों ने आकर श्रीराम को चैतन्यता प्रदान की। चेतनता प्राप्त करने पर श्रीराम महाकाली के विकराल तथा उग्र रूप को देखकर भयभीत हो उठे। तदनन्तर ब्रह्माजी ने उन्हें आश्वस्त कर सीता सहस्रनाम के द्वारा महाकाली की स्तुति करने की सलाह दो स्तुति करने के पश्चात् उन्होंने अपना संहारक रूप त्याग कर सौभ्य रूप धारण कर लिया तथा श्रीराम के साथ पुन: अयोध्या लौट आयीं । इसी कथा का सविस्तार वर्णन इस रामायण में किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक के परिशिष्ट भाग में श्रीराम-स्तुति, सीता-स्तुति एवं हनुमदादि देवों की स्तुतियाँ भी दी गयी हैं । इसके साथ-ही-साथ आरती भी की गयी है जो परमावश्यक है, क्योंकि प्रत्येक शुभकार्य के अंत में आरती करने का विधान पाया जाता है। आरती के पश्चात् ही उस कार्य की सम्पन्नता मानी जाती है। अतः सभी दृष्टियों से इस ग्रन्थ की महत्ता तथा उपयोगिता बढ़ गयी है।
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