Gayatri Brahmavidya on Sri Vidya (with Hindi Translation) Published by Chowkhamba, Kashi
GAYATRI BRAHMAVIDYA ON ŚRIVIDYA
Edited With ‘Prahlad’ Hindi Commentary With Critical Notes (Containing ‘Jnana khanda’ & ‘Saparya khanda’)
Author & Editor Goswami Prahlad Giri Vedantakeshari’
Honored by: Uttar Pradesh Sanskrit Academy, Lucknow Vedantacharya, Sarvadarshanacharya, Sanskrit-Sahityacharya (M.A.), LL.B.
सत्स्वरूप परशिव को प्राप्त करने के लिए उसकी सत्ता चिदानन्दमयी परा शक्ति की उपासना करनी पड़ती है। परा शक्ति ही ‘परा विद्या’ कहलाती है। यही उपासक को ‘भोग’ तथा ‘मोक्ष’ का प्रदान करती है। ‘परा विद्या’ केवल ‘भोग’ की प्राप्ति हेतु उपासना करनेवाले उपासक के लिए ‘श्रीविद्या’ के रूपमें जानी जाती है; जबकि केवल मोक्ष की प्राप्ति हेतु उपासना करने वाले उपासक के लिए ‘ब्रह्मविद्या’ कहलाती है। वस्तुतः ‘परा विद्या, श्रीविद्या तथा ब्रह्मविद्या’ ये पर्याय हैं। इन सभी विद्याओंका लक्ष्य है-पूर्ण ‘भोग’ तथा ‘मोक्ष’ की प्राप्ति कराना। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रस्तुत ग्रन्थ सरल विधि से निर्देशन देता है जिससे उपासक को उस परशिव की पूर्णता की प्रत्यभिज्ञा हो सके।
गायत्री ब्रह्मविद्या| श्रीविद्यान्तर्गता। सविमर्श-‘प्रह्लाद’ – हिन्दी व्याख्यासहिता। ज्ञान-सपर्या-खण्डात्मिका।
‘श्रीविद्या साधना का सर्वश्रेष्ठ साधन दशचक्रात्मक ‘श्रीचक्र’ है। प्रस्तुत ग्रन्थ में दशचक्रात्मक ‘श्री गायत्री ब्रह्मविद्या चक्र’का निरूपण किया गया है। श्रीदक्षिणामूर्ति ‘शिव’ ही गुरु हैं, श्रीगायत्री ब्रह्म विद्या की त्रिबीजा ब्रह्मगायत्री विद्या ही मन्त्र है तथा श्री गायत्री ब्रह्मविद्या ही देवता है। श्रीदक्षिणामूर्ति गुरुपरम्परा में इसकी उपासना ग्यारह आवरणों के माध्यमसे की जाती है।
प्रस्तुत ग्रन्थमें दो खण्ड हैं-ज्ञानखण्ड तथा सपर्याखण्ड। ज्ञान खण्ड में पीठशक्ति श्रीगायत्री ब्रह्मविद्या के पारम्परिक त्रिबीजा, त्रिपदा तथा तुरीया ब्रह्मगायत्री मन्त्रों के अत्यन्त गूढ़ रहस्यों का निरूपण सरल भाषा में किया गया है, जबकि सपर्याखण्ड के अन्तर्गत स्वदीक्षा की विधि, पूजा विधि तथा वन्दना का निरूपण हुआ है। यह एक सम्पूर्ण पद्धति है। ग्रन्थ का मूल संस्कृत तथा अनुवाद हिन्दी भाषा में निरूपित है। यह संस्करण श्रीगायत्री ब्रह्मविद्या परम्परा का अत्यन्त उपयोगी ग्रन्थरत्न है।
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