Hanuman Anushthan Vidhi Explained in Hindi by Pt. Ashok Kumar Goud “Vedacharya” Published by Chowkhamba, Kashi
समस्त भारत वर्ष में श्रीहनुमान और उपासना से सम्बन्धित अनेकानेक पुस्तकें आज भी उपलब्धजी का महत्त्व पूजा और उपासना की दृष्टि से अप्रतिम है। इनके उपासक, पूजक न केवल सनातन धर्मावलम्बी ही हैं, अपितु अन्य मतावलम्बी भी हैं। शाक्त, शैव आदि सम्प्रदायों के लोग भी इनकी पूजा अर्चना श्रद्धा से करते हैं। वास्तविकता तो यही है कि हनुमानजी साक्षात् शिवावतार हैं। ‘शिव’ शब्द का अर्थ ही परममंगल है। इस प्रकार साक्षात् देवता रूप और शिवावतार होने से श्रीहनुमानजी मंगलमूरति हैं। ये ऐसे विलक्षण देव हैं, जिनमें सभी कार्यों को करने की क्षमता है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, भौमवार, स्वाती नक्षत्र और मेष लग्न में माता अंजना के गर्भ से स्वयं शिवजी ने कपीश्वर हनुमान रूप में अवतार ग्रहण किया।
सनातनधर्म में अनेक उपास्य देवता हैं। स्मात्तोपासना में पंचदेव उपासना प्रसिद्ध है। किन्तु इन सभी उपास्य देवों में यदि किसी को ब्रह्मचर्य का मूर्तिमान् स्वरूप कहा जा सकता है तो, वे हनुमानजी ही हैं। अतः सम्यक् ब्रह्मचर्य-परिपालन, शत्रु-निग्रह, काम-विजय, कार्यसिद्धि आदि की दृष्टि से ये अत्यधिक प्रसिद्ध हैं।
हनुमानजी की उपासना कब से आरम्भ हुई, यह कहना तो अत्यधिक कठिन है। किन्तु आज के इस कलिकाल में उनके ही सर्वाधिक उपासक हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि ये अपने भक्तों की मनोवांछित कामनाओं को पूर्ण करते हुए उन्हें संकट से मुक्त करते हैं।
मनोवांछित फलों की प्राप्ति और कठिन परिस्थितियों में इनकी उपासना करनी चाहिए। वैसे भी इनकी उपासना ‘उग्र’ कही गई है। अतः साधक को आभिचारिक (मारण, मोहन आदि) उपासनाएँ कदापि नहीं करनी चाहिए।
जहाँ तक हो सके, इनकी उपासना सात्विक विधि से ही करनी चाहिए। इनकी पूजा-अर्चना और उपासना से सम्बन्धित, जिनमें इनकी उपासना की सम्पूर्ण विधि भी वर्णित हैं, इनके अनुष्ठान से सम्बन्धित ‘हनुमदनुष्ठानविधि’ इस पुस्तक का आश्रय लेकर इनका अनुष्ठान भलीभाँति करवाया जा सकता है।
इस पुस्तक में उन सभी विषयों का समावेश है, जिसकी आवश्यकता वैदिक विद्वान्, कर्मकाण्डी, विद्वज्जन एवं पाठकगण को सदैव पड़ सकती है।
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