Manusmrti with ‘Maniprabha’ Hindi Commentary
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MANUSMRTI with Maniprabha Hindi Commentary by Pt. Haragovinda Shastri Published by : Chowkhamba, Kashi
विद्वान् अन्वादक ने अपने इस संस्करण में कई विशेषताएं समाविष्ट की हैं जो साधारण पाठकों के लिए बहुत उपयोगी हैं । हिन्दी में ‘मणिप्रभा’ नाम से विशद टीका तो है ही, दुरुह स्थलों में भावार्थको और भी स्पष्ट करने के उद्देश्य से ‘विमर्थ’ द्वारा गूढाचं को सरल भाषा में समझाने का प्रयत्न किया गया है। किस श्लोक या किन इलोको में किसी विशिष्ट विषय का प्रतिपादन किया गया है, इसको साधारण पाठक की दृष्टि से स्पष्टकर देने के लिए उपयुक्त शीर्षक भी लगा दिये गये हैं । आरम्भ में हिन्दी में एक विषयानुक्रमणिका और अन्त में इक्कोकानुक्रमणिका लगाकर पुस्तक की डपादेयता और उपयोगिता बिशोष रुप से बढ़ा दी गयो है यह अन्य केवल अनुवाद नहीं, पर मनुस्मृति को समझने और कहाँ क्या बरणित पाप्रतिपादित है, इसको आसानी से ढूंढ निकालने की कुजी भी है, जो साधारण पाठकके लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है ।
MANUSMRTI with Maniprabha Hindi Commentary by Pt. Haragovinda Shastri Published by : Chowkhamba, Kashi
मनुस्मृतिके बारह अध्याय है । इनमें से प्रथम अध्याय मे पंसारीत्पाहिण द्वितीय अध्यायमें – जातकर्मादि संस्कार विधि, ब्रह्मचर्य व्रत विधि और गुरुलेअधिवादनविधिका; तृतीय अध्याय में ब्रह्मचर्य व्रत की समाप्ति के बाद समादर, पञ्चमहायज्ञ और नित्य श्राद्ध विधि का, चतुर्थ अध्याय में ऋत-प्रमृत आदि जीडीकाओं के लक्षण तथा स्नातक (गृहस्थ) के नियम का, पञ्चम अध्याय दही आदि भक्ष्य तथा त्याज लहसुन आदि अभक्ष्य पदार्या और दशाहादि के द्वारा जनन-मरणा शोच में ब्राह्मणादि द्विजातियों की तथा मिट्टी, पानी आदि के द्वारा द्रव्य एवं बर्तनों की शुद्धि का ओर स्त्रीघरमंका, पष्ठ अध्याय में- वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रम का, सप्तम अध्याय में- व्यवहार (मुकदमों) के निर्णय तया कर- ग्रहण आणि राजघर्म का, अष्टम अध्याय में- साथियों सि प्रश्नविधिका, नदम अध्याय में-साथ तथा पृथक् रहने पर स्त्री तथा पुरुष के धर्म, धन आदि सम्पत्ति का विभाजन, द्यूत-विधि, चौरादि निवारण तथा वैश्य एवं शूद्र के अपने-अपने धर्म के अनुष्ठान का, दशम अध्याय में-अम्बष्ठ आदि अनुलोमज तथा मृत-मागधा चंदेह आदि प्रतिलोमज जातियों की उत्पत्ति और आपत्ति काल में कर्तव्य धर्म का, एकादश-अध्याय में पाप की निवृत्ति के लिए कृच्छ -सान्तपन-चान्द्रायण दि प्राय- श्चित विधि का और अन्तिम द्वादश अध्याय में-कर्मानुसार तीन प्रकार की ( उत्तम, मध्यम तथा अधम) सांसारिक गतियों, मोक्ष प्रद, आत्मज्ञान, विहित एवं निषिद्ध गुण-दोषों की परीक्षा, देश धर्म, जाति धर्म तथा पाखण्डि- धर्मका, वर्णन किया गया है
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