Burning of Frankincense (Lohban) has remained a part of cultural and religious ceremonies in Hinduism since time is known.
Loban is actually extracted from the resin out of the Boswellia tree, which is then further churned into creating oils and incense.
This incense is used in almost every spiritual healings and medicinal uses.
Incense of Frankincense directly affects a protein in the brain known as TRPV3. This protein is responsible for our ability to feel warm sensations on our skin.
When one comes in contact with this incense, they experience a strong anxiolytic effect that acts as an anti-depressant; leaving the individual feeling relaxed and reducing stress.
हिन्दू धर्म में लोबान को जलाने की परंपरा सदियों से चलती आ रही है। यह ना सिर्फ एक परंपरा है बल्कि स्वास्थ्य पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है। दरससल लोहबान से निकलने वाले धुएं से मस्तिष्क शांत होता है और शारीरिक थकान भी कम होती है। यह आपकी त्वचा की झनझनाहट को भी कम करता है।
जब कोई व्यक्ति इसके संपर्क में आता है तो उसे मानसिक शांति मिलती है और वह अवसाद मुक्त होने लगता है।
मस्तिष्क तनावमुक्त , शांति और अवसाद से दूर रहने के लिए प्रतिदिन शाम को कोयले की धुनी के ऊपर थोडा सा शुद्ध लोबान डाल देने से पूरा घर का वातावरण बदला जाता है | दक्षिण भारत में आज भी शाम को प्रत्येक घर में लोबान जलाने की प्रथा है | इसकी खुशबु भी मंनोहक होती है |
Sri Kashi Vedic Sansthan, Varanasi
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