Ravan Samhita (Sampoorn) सम्पूर्ण रावण संहिता ( संस्कृत -हिंदी अनुवाद सहित )

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Ravan Samhita  With the Hindi Commentary

EDITED BY Dr.. Surkant Jha (Jyotishacharya )

रावणसंहिता लेखक – डॉ० सुरकान्त झा (Pages 1190)

शिवपुराण के अनुसार रावण के द्वारा उपदिष्टित विषयों को समय-समय पर उनका पुत्र इन्द्रजित् मेघनाद ने संगृहित कर ‘रावणसंहिता’ के रूप में प्रकट किया था। सम्प्रति भी रावण या मेघनाद के नाम से अनेक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं. जिनमें प्रमुख रूप से चातुर्ज्ञान, उड्डीशतन्त्र, कियोड्डीशतन्त्र, अर्कप्रकाश. कुमारतंत्र, रावणसंहिता आदि प्रसिद्ध है, विद्वानों के अनुसार रावण से सम्बन्धित अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, युद्धशास्त्र के ग्रन्थ आदि भी उपलब्ध रहे हैं. परन्तु इस पंक्ति के लिखने तक इनके बारे में  बहुत प्रयास के बाद भी कोई उल्लेखनीय जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी।

प्रस्तुत ‘रावणसंहिता’ के प्रतिपाद्य विषयों को छः तरङ्गों में विभाजित कर विषयानुक्रम से अधोलिखित प्रकार सजा दिया गया है-प्रथम रावणवृत्त तरंग में रावण के जीवन से सम्बन्धित विविध विषयों, द्वितीय शिवोपासना तर के अन्तर्गत रावण की शिवभक्ति, तृतीय योगमुद्रा तरंग में रावण का योग विषयक ज्ञान, चतुर्थ तरङ्ग के अन्तर्गत रावणप्रोक्त तंत्र साधना, पंचम चिकित्सा तर में रावण का चिकित्ग विषयक ज्ञान और षष्ठ तरह के अन्तर्गत इनका ज्योतिष विषयों का व्याख्यान को समुचित स्थान प्रदान किया गया है।

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Ravan Samhita  सम्पूर्ण रावण संहिता ( संस्कृत -हिंदी अनुवाद सहित )

रावणसंहिता लेखक – डॉ० सुरकान्त झा

प्रस्तुत ग्रन्थ रावणसंहिता के प्रवर्तक लंकेश्वर दशानन रावण के प्रसङ्ग में देवताओं से भगवान् श्री विष्णु का यह कहना कि वे अभी उसे युद्ध में परास्त नहीं कर सकते, रावण को प्राप्त दिव्य शक्तियों की ओर ही संकेत करता है। यह अजेयता प्रजापति ब्रह्मा से प्राप्त वर के कारण ही थी। इसे प्राप्त करने के लिए रावण ने घोर तपस्या की थी। परन्तु प्राकृतिक कुछ विलक्षणता का परिणाम ही सही मनुष्यों और वानरों की उपेक्षा का फल पराजय के रूप में उसके सामने आया। लेकिन यह क्या कम महत्त्वपूर्ण है कि लंकेश को पराजित करने के लिए निराकार को साकार रूप लेना पड़ा। उनके युद्ध की चर्चा करते समय किसी ने सच ही कहा है— वैसा कोई युद्ध न कभी हुआ और न कभी होगा।

रावण ने अपने अभियान को पूरा करने के लिए शस्त्र और शास्त्र दोनों साधनों को अपनाया। वह तंत्रशास्त्र का परम ज्ञाता था, उसने औषध ज्ञान को स्वयं जांचा-परखा और फिर प्रयोग किया था, वह एक अच्छा दैवज्ञ भी था। इस ग्रन्थ में उसके इन्हीं विविध रूपों पर प्राप्त सामग्रियों की सहायता से प्रकाश डाला गया है। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि ‘रावण संहिता’ नाम का कोई भी ग्रंथ मूल रूप में उपलब्ध नहीं है। किसी अंश में सही हो सकता है, परन्तु सम्पूर्णता से अलभ्य भी नहीं कहा जा सकता है।

पौराणिक और ज्यौतिषीय गणना के आधार पर रावण की मृत्यु को लगभग नौ लाख वर्ष हो चुके हैं और इतने लंबे समय तक किसी ग्रंथ का मूल रूप में रह पाना संभव नहीं है। अर्थात् समय-समय पर इसमें काफी कुछ जुड़ा ही है।  प्रस्तुत ग्रंथ में उसकी उपलब्ध मौलिकता को बनाए रखते हुए ही कुछ ऐसा प्रयास किया है कि इसमें कुछ इस प्रकार की जानकारी और उपयोगी अलभ्य सामग्री जोड़ी जाए जिससे इस ग्रन्थ की मूल विषय सामग्री की जटिलता को कम कर सके तथा उसे अधिक महत्त्वशाली और उपयोगी भी बनाने में सहायक हो।