Shastra Naam Stotra Sangrah ( with Shastranamawali of 22 Deities )
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1594 Shastra Naam Stotra Sangrah ( with Shastranamawali of 22 Deities ) by Gita Press, Gorakhpur
सहस्त्रनामस्तोत्रसंग्रह देवी-देवताओं के सहस्त्रनामावली सहित बाईस सहस्त्रनामस्तोत्र
प्रारम्भ से ही भगवान्के अर्चन-पूजन में ‘सहस्त्रनाम’ का अत्यधिक महत्त्व माना गया है। सहस्त्रनाम जप तथा सहस्त्रनामार्चन पूजा पद्धति में विशेष महत्त्व रखता है।
अपने शास्त्रों में पंचदेवों की उपासना पूर्ण ब्रह्म के रूप में प्रस्तुत की गयी है। गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा और सूर्य – इन पंचदेवों में से किन्हीं एक को अपना इष्ट मानकर व्यक्ति आराधना करता है, इसलिये इन देवों के ‘सहस्त्रनामस्तोत्र’ भक्तजनों के कल्याण के लिये अपने आर्षग्रन्थों में प्राप्त होते हैं, जिनका पाठ भी किया जाता है तथा इनकी नामावली से अर्चा-पूजा भी की जाती है।
राम का नाम, रूप, लीला और धाम – चारों ही परात्परस्वरूप हैं। इसीलिये नाम-जप, नाम स्मरण तथा नाम-चिन्तन की अत्यधिक महिमा कही गयी है और नाम के माध्यम से भगवदाराधना, उपासना करने का शास्त्रों में विशेषरूप से निरूपण हुआ है।
प्रारम्भ से ही भगवान्के अर्चन-पूजन में ‘सहस्त्रनाम’ का अत्यधिक महत्त्व माना गया है। सहस्त्रनाम जप तथा सहस्त्रनामार्चन पूजा पद्धति में विशेष महत्त्व रखता है।
अपने शास्त्रों में पंचदेवों की उपासना पूर्ण ब्रह्म के रूप में प्रस्तुत की गयी है। गणेश, विष्णु, शिव, दुर्गा और सूर्य – इन पंचदेवों में से किन्हीं एक को अपना इष्ट मानकर व्यक्ति आराधना करता है, इसलिये इन देवों के ‘सहस्त्रनामस्तोत्र’ भक्तजनों के कल्याण के लिये अपने आर्षग्रन्थों में प्राप्त होते हैं, जिनका पाठ भी किया जाता है तथा इनकी नामावली से अर्चा-पूजा भी की जाती है। इन देवों का सहस्त्रनामार्चन विशिष्ट सामग्री द्वारा करने का अपने शास्त्रों में विधान मिलता है और उसकी विशेष महिमा भी बतायी गयी है। जैसे- विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिये गणपति का सहस्त्रनामार्चन दूर्वा, लावा, मोदक आदि से करने का विधान है, तुलसीदल के द्वारा भगवान् विष्णु के सहस्त्रनामाचन का विशेष महत्त्व माना गया है। इसी प्रकार भगवान् सदाशिव का सहस्त्रनामार्चन बिल्वपत्रादि द्वारा करना प्रशस्त है। भगवान् सूर्यनारायण का सहस्रनामार्चन कमल पुष्प से किया जाता है तथा भगवती दुर्गा जपापुष्प तथा कुंकुम- अक्षतादि के सहस्रनामार्चन से प्रसन्न होती हैं । इन देवों के विभिन्न अवतार भी हुए हैं और अनेक नाम-रूपों में इनकी उपासना करने की विधि भी है, जैसे भगवती दुर्गा की आराधना गायत्री, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा, ललिता, भवानी, राधा तथा सीता आदि अनेक नामरूपोंमें की जा सकती है। इसी प्रकार गणेश, सूर्य, शिव और विष्णु के भी अनेक नाम और स्वरूप अपने शास्त्रों में प्राप्त हैं, अतः सभी के सहस्रनाम ग्रंथों में उपलब्ध हैं ।
विभिन्न नाम-रूपों में यथासाध्य सभी देवी-देवताओं के सहस्त्रनामस्तोत्रों का संग्रह । इसके साथ ही अर्चन पूजन की सुविधा की दृष्टि से इन स्तोत्रों की नामावली भी दी गयी है। संख्या की दृष्टि से इन नामावलियों में एक सहस्त्र अथवा इससे अधिक भी नाम प्राप्त हैं।
सहस्त्रनामस्तोत्रों के पूर्व विनियोग, अङ्ग-न्यास तथा ध्यान के मन्त्र भी यथासाध्य देने का प्रयास किया गया है, जिनका प्रयोग सहस्रार्चनमें किया जा सकता है।
परमात्मप्रभु की प्रसन्नता के निमित्त किया गया सहस्त्रनामस्तोत्र का पाठ तथा सहस्त्रार्चन अनन्त फलदायक होता है।
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