Sri Durga Saptsati (Only Hindi with Pictures)

60.00

1161 Sri Durga Saptsati (Only Hindi with Pictures ) by Gita Press, Gorakhpur

संस्कृत ज्ञान से अनभिज्ञ लोगो की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भगवती की कृपा के इस सुन्दर इतिहास (दुर्गासप्तशती) का मात्र हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया जा रहा है ।

Translation by Pandey Pt. Sri Ramnarayandutt ji Shastri “Ram”

1281 Sri Durga Saptsati with (pictures, Hindi translation and recitation method) Special Edition by Gita Press, Gorakhpur

भारतीय संस्कृति का कोई भी प्रेमी आज दुर्गार्तिनाशिनी शक्ति पराम्बा भगवती दुर्गा एवं उनकी उपासना के लिये सर्वोत्तम और सर्वमान्य ग्रन्थरत्न दुर्गासप्तशती से अपरिचित नहीं है। यह एक आशीर्वादात्मक ग्रन्थरत्न है। आजतक न जाने कितने भक्त इस ग्रन्थ के द्वारा भगवती की उपासना करके अपने मनोरथ सिद्ध कर चुके हैं। इस ग्रन्थ के नित्य पाठ से जहाँ समस्त कामनाओं की सिद्धि होती है, वहीं भगवती की कृपा और मुक्ति भी सहज ही प्राप्त की जा सकती है। इसलिये प्रत्येक श्रद्धालु चाहे वह किसी भी देश, वेष, मत, सम्प्रदाय से सम्बन्धित क्यों न हो-दुर्गासप्तशती का आश्रय ग्रहण कर सकता है।

श्रद्धालु भक्तों के कल्याणार्थ गीताप्रेस से इस दिव्य ग्रन्थ के केवल मूल, हिन्दी अनुवाद-अजिल्द तथा सजिल्द अनेक संस्करण प्रकाशित किये गये हैं । इसी परम्परा में संस्कृत ज्ञान से अनभिज्ञ जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए भगवती की कृपा के इस सुन्दर इतिहास (दुर्गासप्तशती) का मात्र हिन्दी अनुवाद प्रकाशित किया जा रहा है । आशा है, श्रद्धालु भक्त इसे अपनाकर देवी की कृपा से अपना अभीष्ट सिद्ध करेंगे।

॥ श्रीदुर्गादेव्यै नमः॥

श्रीदुर्गासमशती हिंदू धर्मका सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसमें भगवतीकी कृपाकै सुन्दर इतिहासके साथ ही बड़े बड़े गृढ़ साधन रहस्य भरे हैं। कर्म, भक्ति और ज्ञानकी त्रिविध मन्दाकिनी बहानेवाला यह ग्रन्थ भक्तोंके लिये वांछा कल्पतरु है। सकाम भक्त इसके सेवन से मनोभिलषत दुर्लभतम वस्तु या स्थिति सहज ही प्राप्त करते हैं और निष्काम भक्त परम दुर्लभ मोक्षको पाकर कृतार्थ होते हैं।

राजा सुरथसे महर्षि मेधाने कहा था-‘तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम् । आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा ॥ महाराज ! आप उन्हीं भगवती परमेश्वरीकी शरण ग्रहण कीजिये। वे आराधनासे प्रसन्न होकर मनुष्योंको भोग, स्वर्ग और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान करती हैं।’ इसीके अनुसार आराधना करके ऐश्वर्यकामी राजा सुरथ ने अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया तथा वैराग्यवान् समाधि वैश्य ने दुर्लभ ज्ञानके द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की।

सप्तशती के पाठ में विधि का ध्यान रखना तो उत्तम है ही, उसमें भी सबसे उत्तम बात है भगवती दुर्गामाता के चरणों में प्रेमपूर्ण भक्ति। श्रद्धा और भक्तिके साथ जगदम्बाके स्मरणपूर्वक सप्तशतीका पाठ करनेवालेको उनकी कृपाका शीघ्र अनुभव हो सकता है।

 

Weight 328 g
Dimensions 19 × 14 × 1.6 cm

Brand

Geetapress Gorakhpur

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