2235 Sri Radha Madhav Kalayan Annual Issue by Gita Press, Gorakhpur
श्रीराधामाधव अङ्क
देवं कंसचाणूरमर्दनम् । देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
वसुदेवपुत्र, देवश्रेष्ठ, देवकी-आह्वादक, कंस- जाणुरका मर्दन करने वाले जगद्गुरु भगवान् श्रीकृष्ण को प्रणति अर्पित कर श्रीराधा-माधव के मधुरातिमधुर चरितों को प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं।
भगवत्कृपा से इस वर्ष कल्याण का विशेषाङ्क ‘श्रीराधामाधव-अङ्क’ पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। कल्याण की परम्परा में प्रतिवर्ष प्रकाशित विशेषांक तथा साधारण अंकों में यद्यपि भगवत्प्रेम से सम्बन्धित चर्चा किसी-न-किसी रूप में अवश्य होती रही है, परंतु सर्वांगीण रूप में भगवत्प्रेम का दिग्दर्शन और उनके स्वरूप का निदर्शन ‘श्रीराधा-माधव’ के युगल स्वरूप में हमें पूर्णरूप से प्राप्त होता है।
वास्तव में प्रेम भगवान्का साक्षात् स्वरूप है, जिसको विशुद्ध सच्चे प्रेम की प्राप्ति हो गयी, उसने परमात्मा- भुको प्राप्त कर लिया।
श्रीराधा-माधव-भाव दिव्याति- | दिव्य प्रेम-माधुर्य-सुधारस का अगाध, अनन्त, असीम महासमुद्र है। उसमें नित्य नयी-नयी अनन्त दिव्य अमृतमयी महातरंगें उठती रहती हैं। श्रीराधा’ श्रीकृष्ण स्वरूप हैं और श्रीकृष्ण श्रीराधास्वरूप हैं। दोनों अनन्त कलाओं का साकार रूप हैं। ये दोनों स्वरूप शरीर और छाया के समान परस्पर भिन्न-अभिन्न हैं। वस्तुत: श्रीराधा के माधुर्य को केवल माधव जानते हैं और माधव के माधुर्य को केवल राधा जानती हैं। श्रीराधा-माधव का मधुरातिमधुर लीलारस-प्रवाह अनन्त रूप से निरन्तर चलता रहता है। श्रीराधा-माधव की निगूढ लीलाओं का-अन्तरंग लीलाओं का उन्हीं भक्तों को दर्शन होता है, जो उनके विशेष अधिकारी हैं और जिन पर श्रीराधा-माधव की विशेष कृपा होती है।
श्रीराधा-माधव की कृपा का पूर्ण आश्रय लेकर भक्तों की इन्हीं सब माधुर्य पूर्ण रसधाराओं का परिकलन कर इस श्रीराधा-माधव विशेषांक को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है इसमें मुख्य रूप से राधामाधव तत्त्व- विचार, श्रीराधा-माधवकी उपासना के विविधरूप, भक्ति जगत्के श्रीसर्वस्व श्रीराधामाधव, श्यामसुन्दर एवं श्रीराधाजी की अन्तरंग एवं बाह्य लीला, लीला के सहचर, वृन्दावन एवं मथुरा धाम तथा राधा-माधवके भक्तवृन्द आदि विषयोंका समावेश हुआ है।
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