Maharana Kumbhakarnashit Pandit Kanhvyas Srimad Ekalingamahtamya ( Mahabodhani Namri Tikasamupetam)
Pandita Kanhavyasa Colleted Srimad Ekalingam Mahatmyam ( Along with original Sanskrit test, Valuable notes & “Mohanabodhini” Hindi Translation) Published by : Parimal Publication
देश ही नहीं, दुनिया में अपने स्वाभिमान, स्वाधीनता, शौर्य-पराक्रम, प्राणोत्सर्ग और विविधतया बलिदान जैसे मूल्यों को धारण करने वाली धरती के रूप में मेवाड़ (मेदपाट) का मुकाबला नहीं। इस भूमि का यह आदर्श भी रहा है कि यहाँ के शासकों ने कभी अपने को राजा नहीं माना, बल्कि यहाँ के शासक शिवस्वरूप भगवान् श्रीएकलिंगनाथ रहे हैं। वे ही मेदपाटेश्वर के नाम से जाने जाते हैं और शासकों ने स्वयं को उनके दीवान की तरह प्रजा के सम्मुख प्रस्तुत किया है।
विश्वप्रसिद्ध उदयपुर (राजस्थान) के उत्तर में लगभग 21 किलोमीटर अरावली पर्वत श्रृंखला में त्रिकूट पर्वत के पास एकलिंगजी का मन्दिर है। शैवतीर्थ होने से यह कैलासधाम है और इसी कारण नाम भी कैलाशपुरी है।
महाराणा हम्मीर, महाराणा मोकल, महाराणा कुम्भा, महाराणा रायमल आदि ने इस मन्दिर के विकास के लिए पर्याप्त योगदान किया। महाराणाओं ने इस शिवधाम के लिए प्राणपण से प्रयास किया है। एकलिंगजी को परमेश्वर मानकर स्वयं को उनका सेवक कहा और मेवाड़ राज्य के शासनसूत्र का संचालन किया। इनमें महाराणा कुम्भा (1433- 1468ई.) का योगदान सर्वोपरि माना जाता है। उनके शासनकाल में ही एकलिंगमाहात्म्य की रचना हुई।
प्रस्तुत एकलिंगमाहात्म्य काव्यमय है जिसका सम्पूर्ण प्रकाशन अद्यावधि शेष था। इस ग्रन्थ की मातृका राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान की उदयपुर शाखा में (संख्या 1477) में विद्यमान है। इसके उक्त पाठ सहित डॉ. प्रेमलता शर्मा द्वारा सम्पादित संक्षिप्त और परिशिष्ट पाठ और एकलिंगपुराण तथा कुम्भलगढ़ प्रशस्ति एवं कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति के श्लोकों के आधार पर इसका आद्योपान्त सम्पादन कर भावार्थ किया गया है।
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