Sri Samkaracarya Caritam by Acarya Nigmabodha Tirtha with Hindi Translation.
Sri Shankracharya Charitam with Hindi Translation by Acharyua Nigambodhtirth Edited and Transltaed by Pt. Shivnarayan Shastri Published by : Parimal Publication
श्रीशङ्कराचार्यचरितम् । इस काव्य में स्वामी जी ने ६२५ पद्यों में निबद्ध तेरह लोगों में जगद्गुरु शङ्कराचार्य के कर्मठ विरक्त जीवन का वर्णन ललित, प्रसाद मय रीति में सरस रूप से किया है ।
महाकाश्य की दण्डी की परिभाषा को’ देखते हुए दण्डी स्वामी निगमबोध तीर्थ का यह काव्य एक महानाध्य है : विश्वविद्युत ऐतिहासिक चरित्र श्रीयुत आद्य शङ्कराचार्य इसके उदात्त नायक हैं। शान्ति रस इसका अरङ्गी रस है । यह पमें और मोक्ष पुरुषार्थों से अनुप्राणित है इस का प्रारम्भ नमस्कारात्मक मङ्गलाचरण से कवि ने किया है। अर्णव, पर्वत आदि के वर्णन से यथोचित रूप में अलङ्कृत है । इसमें मुख्यतया इन्द्रवजा और उपेन्द्रवजा से निबद्ध उपजाति का प्रयोग किया गया है । उसके बाद अनुष्टप जाति का स्थान आता है । यत्र-तत्र बीच में भी बदलकर छन्दों का प्रयोग किया है । जैसे ५/१४ में स्वागता, १२।२६ में बंदास्थ । सन्ति में शिखरिणी मालिनो, बसम्ततिस का, अनुष्ठुभ् सम्परा मग्याक्राम्ता, धादतवितक्रीडित, दूतवि- लम्बित बन्दों का प्रयोग किया गया है। कवि ने कहीं भी भाव की बलि देकर अलंकारों का प्रयोग नहीं किया है।
उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनिवायोष्ति, अर्थाग्तिरम्यास, दूष्टाग्त, निदर्शना आदि अलंकार अत्यन्त स्वाभाविक रूपमें यथोचित सन्निवेशमें प्रयुक्त हुए हैं इसी प्रकार याबदालकार भी सहज स्वाभाविक रूप से प्रयुक्त होने के कारण काध्यको सूश्ब्य बनाते हैं।
कवि को शैली भी सुगम प्रसादमय है। लम्बे समास, क्लिष्ट पदों का प्रयोग शायद खोजने पर ही कहीं मिलें । बहुत श्लोक इतने सरल हैं कि अन्वय की भी आवश्यकता नहीं है। भाषा भी व्याकरण के अनुकूल एवं सरल है ।
इस प्रकार यह काव्य सहज, सरल, प्रवाही, सरस, अलङ्कृत और प्रसाद गुण से युक्त होने के कारण सहृदयजन को प्रीति प्रदान करेगा और महा पुरुषचरित वर्णन के पुथ्य से कवि को यावच्चन्द्र दिवाकर कीर्तिमान् बनाए रखेगा।
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