श्रीमद्भागवत साक्षात् भगवान् का स्वरूप है। इसी से भक्त-भागवतगण भगवद्भावना से श्रद्धापूर्वक इसकी पूजा आराधना किया करते हैं। भगवान् व्यास-सरीखे भगवत्स्वरूप महापुरुष को जिसकी रचना से ही शान्ति मिली; जिसमें सकाम कर्म, निष्काम कर्म, साधनज्ञान, सिद्धज्ञान, साधनभक्ति, साध्यभक्ति, वैधी भक्ति, प्रेमा भक्ति, मर्यादामार्ग, अनुग्रहमार्ग, द्वैत, अद्वैत और द्वैताद्वैत आदि सभी का परम रहस्य बड़ी ही मधुरता के साथ भरा हुआ है, जो सारे मतभेदों से ऊपर उठा हुआ अथवा सभी मतभेदों का समन्वय करने वाला महान् ग्रन्थ है-उस भागवतकी महिमा क्या कही जाय। इसके प्रत्येक अंग से भगवद्भावपूर्ण पारमहंस्य ज्ञान-सुधा-सरिताकी बाढ़ आ रही है-‘यस्मिन् पारमहंस्यमेकममलं ज्ञानं परं गीयते।’ भगवान् के मधुरतम प्रेम-रस का छलकता हुआ सागर है-श्रीमद्भागवत। इसी से भावुक भक्तगण इसमें सदा अवगाहन करते हैं। परम मधुर भगवद्रस से भरा हुआ ‘स्वाद-स्वाद पदे-पदे’ ऐसा ग्रन्थ बस, यह एक ही है। इसकी कहीं तुलना नहीं है।
विद्याका तो यह भण्डार ही है। ‘विद्या भागवतावधिः’ प्रसिद्ध है। इस ‘परमहंससंहिता’ का यथार्थ आनन्द तो उन्हीं सौभाग्यशाली भक्तों को किसी सीमा तक मिल सकता है, जो हृदय की सच्ची लगन के साथ श्रद्धा-भक्तिपूर्वक केवल ‘भगवत्प्रेमकी प्राप्ति के लिये ही इसका पारायण करते हैं। यों तो श्रीमद्भागवत आशीर्वादात्मक ग्रन्थ है, इसके पारायण से लौकिक-पारलौकिक सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इसमें कई प्रकार के अमोघ प्रयोगों के उल्लेख हैं जैसे ‘नारायण-कवच’ (स्क० ६ अ० ८) -से समस्त विघ्नों का नाश तथा विजय, आरोग्य और ऐश्वर्यकी प्राप्ति; ‘पुंसवन- व्रत’ (स्क० ६ अ० १९)-से समस्त कामनाओंकी पूर्ति; ‘गजेन्द्रस्तवन’ (स्क० ८ अ० ३)-से ऋण से मुक्ति, शत्रु से छुटकारा और दुर्भाग्य का नाश, ‘पयोव्रत’ (स्क०८ अ० १६) – से मनोवांछित संतान की प्राप्ति; ‘सप्ताहश्रवण’ या पारायण से प्रेतत्व से मुक्ति। इन सब साधनों का भगवत्प्रेम या भगवत्प्राप्ति के लिये निष्कामभाव से प्रयोग किया जाय तो इनसे भगवत्प्राप्ति के पथ में बड़ी सहायता मिलती है। श्रीमद्भागवत के सेवन का यथार्थ आनन्द तो भगवत्प्रेमी पुरुषों को ही प्राप्त होता है। जो लोग अपनी विद्या-बुद्धि का अभिमान छोड़कर और केवल भगवत्कृपा का आश्रय लेकर श्रीमद्भागवतका अध्ययन करते हैं, वे ही इसके भावों को अपने-अपने अधिकार के अनुसार हृदयंगम कर सकते हैं।
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