पुराण ज्ञान के भण्डार हैं, ये भारतीय संस्कृति की उत्कृष्ट निधि हैं। इनमें धर्मशास्त्र, राजनीति, व्यवहारशास्त्र, शिल्पशास्त्र, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष, व्याकरण, आयुर्वेद, संगीत, छन्दशास्त्र आदि विभिन्न विषयों का समावेश है। यद्यपि सभी पुराणों में सर्ग, प्रतिसर्ग, मन्वन्तर, वंश तथा वंशानुचरित सामान्य रूप से एक ही प्राप्त होते हैं; फिर भी उनका अपना वैशिष्ट्य होता है, यथा-श्रीमद्भरागवत में भगवान् श्रीकृष्ण की कथा है, श्रीमद्देवीभागवत में भगवतीजगज्जननी जगदम्बा के विविध चरित्र हैं, गरुडपुराण में जीवों के पाप -पुण्य के आधार पर विभिन्न नरकों-स्वर्गों में जाने तथा अनेक योनियाँ प्राप्त करने का विवरण है, साथ ही आयुर्वेदशास्त्र और नीतिशास्त्र का वर्णन है। इस प्रकार विभिन्न पुराणों के अपने वैशिष्ट्य हैं। यहाँ वायुपुराण के वैशिष्ट्य का वर्णन है किया जा रहा है
शैवपुराण-वायुपुराण शैवपुराण है। इसमें पदे-पदे भगवान् शिव की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। मांगलिक श्लोकों के बाद इसका प्रारम्भ ही ‘प्रपद्ये देवमीशानम्’ (मैं देवाधिदेव ईशान की शरण लेता हूँ) से हुआ है तथा प्रथम अध्याय (अनुक्रमणिकाध्याय) की समाप्ति पर कहा गया है
इस समस्त संसार में नारायण व्याप्त रहते हैं, फिर भी इस जगत् के स्रष्टा के भी स्रष्टा देव महेश्वर हैं। अतएव संक्षेप में सुन लीजिये पुराण महेश्वर है। सृष्टि-काल में यही सृष्टि करते हैं और संहार-काल में प्रलय करते हैं
नारायणःसर्वमिद विश्वं व्याप्तं प्रवर्तते। तस्यापि जगतः स्षटुः स्रष्टा देवो महेश्वरः।।
अतश्च संक्षेपमिमं शृणुध्वं महेश्वरः सर्वमिदं पुराणम्। स सर्गकाले च करोति सर्ग संहारकाले पुनराददीत।।
Translator and Comments by Sri Shiv Jeet Singh
Publisher: Choukhamba Vidyabhawan, Kashi
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