हनुमानजीपर वेद, पुराण, रामायण, महाभारत और तुलसी-साहित्यमें प्रचुर सामग्री प्राप्त होती है। तन्त्र-साहित्यमें उनकी उपासनाके चमत्कारिक प्रभाव निर्दिष्ट हुए हैं और हनुमत्-उपासना, कल्पद्रुम आदि कई स्वतन्त्र ग्रन्थ भी हैं। मन्त्रमहोदधि, मन्त्रमहार्णव आदिमें उनकी अनेक उपासना-विधियाँ हैं। इन सबोंके आधारपर विद्वानोंने बहुत अच्छे लेख लिखे। वेदाचार्य गंगेश्वरानन्दजी महाराजने कुछ वैदिक मन्त्रोंका हनुमानपरक इतना सुन्दर अर्थ दिखलाया, जिसे पढ़कर यही लगा कि वास्तवमें उसके पद, अक्षर सब रामायणके उन्हीं अर्थोको व्यक्त करते हैं जो हनुमानपरक हैं। इसीलिये प्राचीन विद्वान् नीलकंठ चातुरध्वरीकने अपने मन्त्र-रामायणमें मन्त्रोंके उद्धरणके साथ और गोस्वामी तुलसीदासजीने मानसमें बार-बार ‘बेद बिदित तेहि दसरध नाऊ’, ‘तहाँ बेद अस कारन राखा और ‘चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ आदिमें वेदोंमें रामचरित, हुनुमच्चरित्रकी स्थिति मानी है।
इस प्रकार यह अङ्क अत्यन्त उपयोगी बन गया और फिर वाल्मीकि, अध्यात्म आदि सभी रामायणों, पुराणों आदिसे संग्रहकर स्वतन्त्र हनुमच्चरित्रकी विस्तृत क्रमबद्ध रचना कर हनुमानजीके जन्मसे लेकर अबतक उनके अमर रहकर किये गये क्रिया-कलापोंका भी परिचय दिया गया है; जैसे-द्वापरमें वे भीमसेनको मिले, अर्जुनके रधपर रहे और कलियुगमें गोस्वामीजीपर प्रसन्न रहकर उन्हें रामका दर्शन कराया और विविध भक्तोंकी मनोकामना पूर्ण की। इसी कारण देश-विदेशमें उनके अनेक मन्दिर और प्रतिमाएँ स्थापित की गयीं जिनकी उपासनासे अनेक प्रकारके लोकोपकार तत्काल होते हैं। जिनमें अयोध्याकी हनुमानगढ़ी, काशीके संकटमोचन, राजस्थानके सालासर तथा अन्य भी ऐसे ही अनेक दिव्य अर्चावतारोंका उल्लेख हुआ है, जहाँ उनकी उपासनासे तत्काल चमत्कार प्रकट होते हैं और सभी क्लेश दूर हो जाते हैं।
साथ ही इस अड्कमें हनुमानजीको तत्काल प्रसन्न करनेवाले विविध स्तोत्र, यन्त्र, मन्त्र और ध्यान-पद्धतियों आदिका समावेश किया गया है। इसमें उनकी षडङ्ग, दशाङ्ग-उपासनाकी विधियाँ भी निर्दिष्ट हुई हैं, जिनसे वे अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तोंकी कामना पूर्ण कर देते हैं। इन स्वोंके अतिरिक्त उनके भव्य चित्र और ऐसी घटनाओंका भी समावेश किया गया, जहां उनके ध्यान-स्मरण करते ही विपत्ति आदि दूर होने तथा उनके दर्शन आदि होनेकी बात भी सम्मिलित थी।
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