Ganesh Stotra Ratnakar

50.00

2024 Ganesh Stotra Ratnakar with Hindi translation by Gita Press, Gorakhpur

इस पुस्तक में भगवान् गणेश की स्तुति, सहस्रनाम, आरती, भजन और उनसे सम्बन्धित स्तोत्रों को एक स्थान पर संगृहीत किया गया है , जिससे भक्तजनों को पठन पाठन, कीर्तन और मनन करने में सुविधा हो। हिंदी अनुवाद के साथ

In this book, the praise of Lord Ganesh, Sahastranama, Aarti and hymns related to them are stored in one place, which facilitates the devotees in reading, reciting and chanting. with Hindi Translation

Shiva Stotra Ratnakar by Gita Press, Gorakhpur

ॐकारमाद्यं प्रवदन्ति सन्तो वाचः श्रुतीनामपि यं गृणन्ति । गजाननं देवगणानताघ्रिं भजेऽहमर्धेन्दुकृतावतंसम् ॥

‘सन्त-महात्मा जिन्हें आदि ओंकार बताते हैं, श्रुतियों की वाणियाँ भी जिनका स्तवन करती हैं, समस्त देव समुदाय जिनके चरणारविन्दों में प्रणत होता है तथा अर्धचन्द्र जिनके भालदेश का आभूषण है, उन भगवान् गजानन का मैं भजन करता हूँ।’

सनातन वैदिक हिन्दू धर्म के उपास्य देवताओं में भगवान् श्रीगणेश का असाधारण महत्त्व है। किसी भी धार्मिक अथवा मांगलिक कार्य का आरम्भ बिना उनकी पूजा के नहीं होता। इतना ही नहीं किसी भी देवता के पूजन और उत्सव महोत्सव का प्रारम्भ करते ही सर्वप्रथम महागणपति का स्मरण और उनका पूजन करना अनिवार्य है। इतना महत्त्व अन्य किसी देवता को प्राप्त नहीं होता।

गणेश शब्दका अर्थ है- गणों के स्वामी। हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और अन्तःकरणचतुष्टय ( मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार) – इनके पीछे जो शक्तियाँ हैं, वे चौदह अधिष्ठात्री देवता कहे जाते हैं। इन देवताओं के मूल प्रेरक हैं भगवान् श्रीगणेश। वस्तुतः भगवान् गणपति शब्दब्रह्म – ॐकारस्वरूप हैं, वे सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञ और सर्वव्यापी हैं। श्रीगणपत्यथर्वशीर्ष में कहा गया है कि ओंकार का ही व्यक्त स्वरूप गणपति देवता हैं। मुद्गलपुराण में भी गणेशजी को ओंकारस्वरूप ही बताया गया है— ‘ॐ इति शब्दोऽभूत् स वै गजाकारः।’ आदिशंकराचार्य ने भी भगवान् श्री गणेश की वेद गर्भ ओंकार रूप में वन्दना की है

यमेकाक्षरं निर्मलं निर्विकल्पं गुणातीतमानन्दमाकारशून्यम्

परं पारमोङ्कारमाम्नायगर्भ वदन्ति प्रगल्भं पुराणं तमीडे॥

(गणेशभुजंगम् ७)

‘जिन्हें ज्ञानीजन एकाक्षर ( प्रणवरूप), निर्मल, निर्विकल्प, गुणातीत, आनन्दस्वरूप, निराकार, परमपार एवं वेदगर्भ ओंकार कहते हैं, उन प्रस पुराणस्वरूप गणेशका मैं स्तवन करता हूँ।’

जिस प्रकार प्रत्येक वेदमन्त्र के आरम्भ में ओंकार का उच्चारण आवश्यक है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर ओंकार के व्यक्ति स्वरूप भगवान् श्रीगणपति का स्मरण एवं पूजन अनिवार्य है। यह परम्परा शास्त्रीय है। ऋग्वेद में श्रीगणपति की स्तुति करते हुए कहा गया है-‘आपके बिना कोई भी कर्म नहीं किया जाता—न ऋते त्वत्क्रियते किव्वन (१० | ११२|९) ।’ वैदिक धर्मान्तर्गत समस्त उपासना सम्प्रदायों ने इस प्राचीन परम्परा को स्वीकार कर इसका अनुसरण किया है। श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजीने भी लिखा है

महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजितअत नाम प्रभाऊ ॥

(बालकाण्ड १८।२)