Garbhdhan-Punsvan-Simntonnyan-Sanskaar (with Pooja Vidhi)

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Garbhdhan-Punsvan-Simntonnyan-Sanskaar ( with Pooja Vidhi ) by Dr Kamla Kant Tripathi Edited by Prof. Ram Murti Sharma Published by Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रकाशन-प्रन्थमालाओं ने प्राय्य भारतीय विद्याओं की प्रायः समस्त शाखाओं को अभिव्याप्त किया है। इस विश्वविद्यालय के द्वारा माननीय कुलपति प्रो. राममूर्ति शर्मा जी की प्रेरणा से एक नयी ग्रन्थमाला ‘संस्कार ग्रन्थमाला ‘ का प्रवर्तन हुआ है।

Description
Garbhdhan-Punsvan-Simntonnyan-Sanskaar ( with Pooja Vidhi ) by Dr Kamla Kant Tripathi Edited by Prof. Ram Murti Sharma Published by Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रकाशन-प्रन्थमालाओं ने प्राय्य भारतीय विद्याओं की प्रायः समस्त शाखाओं को अभिव्याप्त किया है। इस विश्वविद्यालय के द्वारा माननीय कुलपति प्रो. राममूर्ति शर्मा जी की प्रेरणा से एक नयी ग्रन्थमाला ‘संस्कार ग्रन्थमाला ‘ का प्रवर्तन हुआ है। इस संस्कार-ग्रन्थमाला में हिन्दू-संस्कारों से सम्बन्धित निम्नलिखित दस पुस्तकें सम्प्रति प्रकाशित हो रही हैं

१. शिलान्यास एवं वास्तुपूजन-पद्धति

२. गर्भाधान-पुंसवन-सीमन्तोन्नयन-संस्कार

३. जातकर्म-संस्कार

४. नामकरण-संस्कार

५. अन्नप्राशन-संस्कार

६. चूडाकरण-संस्कार

७. कर्णवेध-संस्कार

८. यज्ञोपवीत-वेदारम्भ-समावर्तन-संस्कार

९. केशान्त-संस्कार

१०. विवाह-संस्कार

संस्कारों के विषय में गृह्यसूत्रों, धर्मसूत्रों, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य-स्मृति तथा अन्य स्मृतियों में सामग्रियाँ पुष्कल मात्रा में उपलब्ध हैं। साथ ही रघुनन्दन के संस्कारतत्त्व, नीलकण्ठ के संस्कारमयूख, मित्रमिश्र के संस्कारप्रकाश, अनन्तदेव के संस्कार-कौस्तुभ एवं गोपीनाथ के संस्काररत्नमाला नामक निबन्ध-ग्रन्थों में भी प्रचुर मात्रा में सामग्री भरी पड़ी है। स्मृतिकारों में संस्कारों की संख्या पर भी पर्याप्त मतभेद है। महर्षि गौतम के मत से चालीस संस्कार होते हैं। महर्षि अङ्गिरा ने पच्चीस संस्कारों की बात कही है। व्यास-स्मृति में सोलह संस्कार गिनाये गये हैं। यथा

गर्भाधानं पुंसवनं सीमन्तो जातकर्म च । नामक्रियानिष्क्रमणान्नप्राशनं वपनक्रिया

कर्णवेधो व्रतादेशो वेदारम्भक्रियाविधिः । केशान्तः स्नानमुद्वाहो विवाहाग्निपरिग्रहः ॥

त्रेeताग्निसङ्ग्रहश्चेति संस्काराः षोडश स्मृताः ॥

लोक में प्रायः ये ही सोलह संस्कार प्रचलित हैं। इन्हीं सोलह संस्कारों से कल्याण-परम्पराओं का भोक्ता मानव शरीर ब्रह्मत्वप्राप्ति की अर्हता प्राप्त करता है। भगवान् मनु ने इस तथ्य को निम्नलिखित श्लोक में प्रतिपादित किया है

स्वाध्यायेन व्रतैह्होमैस्त्रैविद्येनेज्यया सुतैः । महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः ।॥

स्थान एवं काल-भेद से विश्व स्तर पर संस्कार-भेद परिलक्षित होते हैं। वस्तुत: संस्कारों की परिधि में मानवमात्र परिवेष्टित है। मानव मन एवं शरीर पर संस्कारों का प्रभाव बहु-आयामी होता है। भारतीय संस्कार मनुष्य को पवित्र तो करते ही हैं, साथ ही उसे विभूषित भी करते हैं। इस तथ्य का उन्मीलन महाकवि कालिदास ने कुमारसम्भव महाकाव्य में बड़े मार्मिक शब्दों में किया है

प्रभामहत्या शिखयेव दीपः

त्रिमार्गयेव त्रिदिवस्य मार्गः।

संस्कारवत्येव गिरा मनीषी

तया स पूतश्च विभूषितश्च ॥ (कुमा. १। २८)

 

अर्थात् जिस प्रकार प्रभा की स्निग्धता एवं देदीप्यमान आलोक से दीपशिखा पवित्र और विभूषित होती है, स्वर्गङ्गा से जिस प्रकार स्वर्गलोक पवित्र एवं विभूषित होता है, जिस प्रकार संस्कार वाली वाणी से मनीषी व्यक्ति पवित्र एवं विभूषित होता है. उसी प्रकार कन्या पार्वती से उनके पिता हिमालय पवित्र एवं विभूषित हुए।

Additional information
Weight 70 g
Dimensions 21.5 × 14 cm
Brand

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Sampurnanand Sanskrit University

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