प्रत्येक मनुष्य सफल, समृद्ध, सार्थक, सुखी एवं शान्तिपूर्ण जीवन जीना चाहता है, पर यह इतना सहज नहीं है; क्योंकि आज के युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भारी चुनौतियाँ हैं, अनगिनत संघर्ष हैं। चुनौतियों और संघर्षों से भरे दुर्गम जीवन पथ पर चलकर सफलता एवं समृद्धि अर्जित करना और साथ ही मन की शान्ति भी प्राप्त करना सहज कार्य नहीं है। जीवन में समग्र सफलता एवं शान्ति का समन्वय केवल आध्यात्मिक विचारों एवं चिन्तन से ही सम्भव हो सकता है। जीवन में लौकिक सफलता एवं समृद्धि तथा मन की शान्ति प्राप्त होती रहे और हमारा जीवन पूर्णतः सार्थक बने, इसके लिये हमें समुचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। ऐसा मार्गदर्शन सच्चे संत-महात्मा या सात्त्विक महापुरुष अथवा आध्यात्मिक धार्मिक ग्रन्थ प्रदान कर सकते हैं। हमारे आध्यात्मिक वाङ्मय में वेद, उपनिषद्, पुराण, गीता, रामायण सहित ऐसे अनेक ग्रन्थ रत्न हैं, जो सफल एवं शान्तिपूर्ण जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्र देते हैं। ऐसा ही एक दिव्य ग्रन्थरत्न है – श्रीमद्भागवतमहापुराण ।
श्रीमद्भागवत एक जीवन-ग्रन्थ है। यह मानव जीवन का एक अनुपम, उत्कृष्ट एवं आदर्श मार्गदर्शक है। इसमें जीवन का सम्पूर्ण दर्शन है, जीवन के प्रश्नों के उत्तर हैं, जीवन एवं जगत्की समस्याओं के समाधान हैं और सफल, सार्थक, समृद्ध एवं शान्तिपूर्ण जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्र हैं।
श्रीमद्भागवत एक पौराणिक ग्रन्थ है। इसमें विविध कथाएँ हैं। भगवान् श्रीकृष्ण की रसमयी, माधुर्यमयी, ऐश्वर्यमयी एवं रहस्यमयी दिव्य लीलाएँ हैं। दुष्टों के उद्धार के लिये किये गये उनके महनीय कार्यों की गाथाएँ हैं। श्रीकृष्ण की वंशी की मधुर तान के मीठे स्वर इसमें गूँज रहे हैं। वेणुगीत, गोपीगीत एवं रासलीला के दिव्य नाद निनादित हो रहे हैं इस महाग्रन्थ में।
भागवत में भगवान्के भक्तों के जीवनचरित हैं। इन भक्तों के जीवन के अनुभव, अनुभूतियाँ एवं विचार हैं, जो हमें जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण देते हैं, जीवन जीने की कला सिखाते हैं एवं हमारे अन्दर दिव्य भक्तिभाव जाग्रत् करते हैं। इस ग्रन्थ का स्वाध्याय मनुष्य को एक दिव्य जीवन-दर्शन, शान्ति एवं आनन्द प्रदान करता है।
मनुष्य जीवन भर जीविका के प्रपंच में ही उलझा रहता है और उसी को वास्तविक जीवन समझ लेता है। जीवन के मूल उद्देश्य, परम लक्ष्य की ओर वह ध्यान ही नहीं देता। भागवत उसे इस दिशा में चिन्तन हेतु विशेष रूपसे प्रेरित करता है। प्रत्येक सत्कार्य के पीछे प्रभु की प्रेरणा रहती है और वही प्रेरणा इच्छा एवं अनुग्रह के रूप में पल्लवित, पुष्पित, फलित और सुरभित हुआ करती है। ‘जीवन संजीवनी’ की पूर्णता भी उसी परम प्रभु के अनुग्रह का एक सोपान है। इसमें लेखक महोदय डॉ० श्रीराजारामजी गुप्ता ने अमृतसिन्धु भागवत से भावरूपी नवनीत को सँजोकर उसका आस्वादन कराने का श्लाघ्य प्रयत्न किया है। वर्तमान समय में श्रीमद्भागवत पर कथाएँ और प्रवचन तो बहुत हो रहे हैं, पर इनका अपेक्षित प्रभाव श्रोताओं एवं समाज पर जो होना चाहिये, वह दिखायी नहीं देता। श्रोता सुनकर भूल भी जाते हैं। उन जीवन सूत्रों पर पूरी तरह चिन्तन, मनन नहीं करते और न ही उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करते हैं। किसी सन्देश को भलीभाँति आत्मसात् करने के लिये श्रवण के साथ साथ पठन की भी आवश्यकता होती है। अतः भागवत के व्यावहारिक जीवन-सूत्रों एवं सन्देशों को सरल भाषा में पाठकों तक पहुँचाने का विनम्र प्रयास लेखक महोदय ने ‘जीवन-संजीवनी’ के माध्यम से किया है। इस पुस्तक की विशेषता यही है कि सामान्य ज्ञान वाले व्यक्ति अथवा आज के युवक जो भागवत धर्म से अपरिचित हैं, वे भी इससे लाभान्वित हो सकेंगे। वास्तव में भागवत तो ज्ञान, भक्ति एवं प्रेम का सागर है, उसकी इयत्ता की सीमा नहीं, तथापि इस ग्रन्थ में यथामति भागवत के भावों को प्रस्तुत करने का प्रयास लेखक किया है।
श्रीमद्भागवत ने मनुष्य को उसके निज स्वरूप से परिचित कराया है। मानव जीवन की दिव्यता एवं महत्ता को रेखांकित किया है और एक उच्च कोटिका जीवनदर्शन प्रस्तुतकर मानव के उत्थान हेतु आह्वान किया है। वस्तुतः भागवत ने सफल, सार्थक एवं सुख शान्ति पूर्ण जीवन के लिये श्रेष्ठतम व्यावहारिक सूत्र दिये हैं। प्रत्येक मनुष्य यदि इनके अनुसार जीवन जीने लगे तो यह संसार एक विशाल शान्तिकुंज बन जायगा। यही आजके युगकी सबसे बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य जीवन के सर्वांगीण विकास एवं विश्व में सुख, शान्ति एवं सद्भाव स्थापित करने के लिये भागवत के सन्देशों एवं सूत्रों को अपने जीवन में उतारा जाय और पूरे विश्व में इसे प्रचारित-प्रसारित किया जाय। परमात्मप्रभु से यही हमारी मंगल कामना है।
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