मन्दिरो की नगरी काशी में बाबा काल भैरव मन्दिर वाराणसी कैन्ट से लगभग 3 कि० मी० पर शहर के उत्तरी भाग में स्थित है। यह मन्दिर काशी खन्डोक्त पुरातन मन्दिरॊ में सॆ एक है। इस मन्दिर की पौराणिक मान्यता यह है, कि बाबा विश्वनाथ ने काल भैरव जी को काशी का कोतवाल (ॠेतपाल) नियुक्त किया था। काल भैरव जी को काशीवासियो के दंड देने का अधिकार है। यहाँ रविवार एवं मंगलवार को अपार भीङ आती है। आरती के समय नगाडे, घंटा,डमरू,की धव्नि बहुत ही मनमोहक लगती है। यहाँ बाबा को परसाद में बड़ा,शराब (कारण) पान का विशेष महत्व है। यहाँ विषेश रूप से भूत-पिशाचादि के उपचार हेतु लोग आते हैं, तथा बाबा की कॣपा से ठीक हो जाते हैं। यहाँ बालकों को काले धागे ( गंडा ) दिया जाता है, जिससे बच्चे भय-मुक्त हो जाते हैं। काशी में ऐसी मान्यता है, कि कोई भी प्राणी को मृत्यु से पूरर्व यम यातना के स्थान पर बाबा काल भैरव के सोटे की यातना का सामना करना होता है,हाँ परन्तु मान्यता यह भी है,कि केदार खंड काशी बासी को भैरव यातना भी नहीं भोगनी पड़ती है
Pooja / Sadhana/ Strotra / Mantra for Bhairav Ji
काशी भैरव साधना, सरल प्रयोग,…….
भैरव का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें वे त्रिशूल, खड़ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं। इनका वाहन श्वान (कुत्ता) है। इनकी वेश-भूषा लगभग शिवजी के समान है। भैरव श्मशानवासी हैं। ये भूत-प्रेत, योगिनियों के अधिपति हैं। भक्तों पर स्नेहवान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। भगवान भैरव अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करते हैं। जो व्यक्ति भैरव जयंती को अथवा किसी भी मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव का व्रत रखता है, पूजन या उनकी उपासना करता है वह समस्त कष्टों से मुक्त हो जाता है।
भैरव के तीन रूप हैं,……..
बटुक भैरव, स्वर्णाकर्षण भैरव और काल भैरव।
बटुक भैरव का स्वरूप 7-8 साल के बालक जैसे हैं, इनके एक हाथ में ब्रह्मा का कटा हुआ सिर और दूसरे हाथ में डमरू सहित त्रिशूल दिखाया जाता है। बटुकनाथ बड़े ही भोले हैं और इनकी साधना बड़ी ही फलदायी होती है। रूद्राष्टाध्यायी तथा भैरव तंत्र के अनुसार भैरव को शिवजी का अंशावतार माना गया है।
ब्रह्माजी के वरदान स्वरूप भैरव जी में सम्पूर्ण विश्व के भरण-पोषण की सामथ्र्य है, अत: इन्हें “भैरव” नाम से जाना जाता है। इनसे काल भी भयभीत रहता है अत: “काल भैरव” के नाम से विख्यात हैं। दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें “आमर्दक” कहा गया है। शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार या मंगलवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
भगवान भैरव की उत्पत्ति,…….
रुद्र के भैरवावतार की विवेचनाट शिव-पुराण में इस प्रकार है ” एक बार समस्त ऋषिगणों में परम-तत्त्व को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई । वे परम-ब्रह्म को जानकर उसकी तपस्या करना चाहते थे । यह जिज्ञासा लेकर वे समस्त ऋषिगण देवलोक पहुँचे । वहाँ उन्होंने ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि हम सभी ऋषिगण उस परम-तत्त्व को जानने की जिज्ञासा से आपके पास आए हैं ।कृपा करके हमें बताइये कि वह कौन है, जिसकी तपस्या कर सकें ? इस पर ब्रह्मा जी ने स्वयं को ही इंगित करते हुए कहा, ” मैं ही वह परम-तत्त्व हूँ ।”
ऋषिगण उनके इस उत्तर से सन्तुष्ट नहीं हुए । तब यही प्रश्न लेकर वे क्षीर-सागर में भगवान् विष्णु के पास गए, परन्तु उन्होंने भी कहा वे ही परम-तत्त्व हैं, अतः उनकी आराधना करना श्रेष्ठ है, किन्तु उनके भी उत्तर से ऋषि-समूह सन्तुष्ट नहीं हो सका । अन्त में उन्होंने वेदों के पास जाने का निश्चय किया । वेदों के समक्ष जाकर उन्होंने यही जिज्ञासा प्रकट की कि हमें परम-तत्त्व के बारे में ज्ञान दीजिये ।
इस पर वेदों ने उत्तर दिया कि, “शिव ही परम-तत्त्व है । वे ही सर्वश्रेष्ठ और पूजन के योग्य हैं ।” यह उत्तर सुनकर ब्रह्मा और विष्णु ने वेदों की बात को अस्वीकार कर दिया । उसी समय वहाँ एक तेज-पुँज प्रकट हुआ और उसने धीरे-धीरे एक पुरुषाकृति को धारण कर लिया । यह देख ब्रह्मा का पँचम सिर क्रोधोन्मत्त हो उठा और उस आकृति से बोला, “पूर्वकाल में मेरे भाल से ही तुम उत्पन्न हुए हो, मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रुद्र’ रखा था । तुम मेरे पुत्र हो, मेरी शरण में आओ ।”
ब्रह्मा की इस गर्वोक्ति से वह तेज-पुँज रुपी शिव जी कुपित हो गए और उन्होंने एक अत्यन्त भीषण पुरुष को उत्पन्न कर उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, “आप काल-राज हैं, क्योंकि काल की भाँति शोभित हैं । आप भैरव हैं, क्योंकि आप अत्यन्त भीषण हैं । आप काल-भैरव हैं, क्योंकि काल भी आपसे भयभीत होगा । आप आमर्दक हैं, क्योंकि आप दुष्टात्माओं का नाश करेंगे ।”
शिव से वरदान प्राप्त करके श्रीभैरव ने अपने नखाग्र से ब्रह्मा के अपराधकर्त्ता पँचम सिर का विच्छेद कर दिया । लोक मर्यादा रक्षक शिवजी ने ब्रह्म-हत्या मुक्ति के लिए भैरव को कापालिक व्रत धारण करवाया और काशी में निवास करने की आज्ञा दे दी ।
श्रीबटुक के पटल में भगवान् शंकर ने कहा कि “हे पार्वति ! मैंने प्राणियों को सभी प्रकार के सुख देने वाले बटुकभैरव का रुप धारण किया है । अन्य देवता तो देर से कृपा करते हैं, किन्तु भैरव शीघ्र ही अपने साधकों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं । उदाहरण के तौर पर भैरव का वाहन कुत्ता अपनी स्वामी-भक्ति के लिए प्रसिद्ध है ।
सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति पाने के लिए व स्वयं को और अपने परिवार को ऊपरी बाधाओं से सुरक्षित रखने में भैरव आराधना चमत्कारिक परिणाम देने वाली है।
रूद शिव के त्रिनेत्र की ज्वाला से जन्मे हैं भैरव। इनका जन्म अहंकार और असत्य के नाश के लिए हुआ है। रुद को उग्र देवता के रूप में पूजा जाता है पर इनका एक बहुत ही प्यारा और सौम्य रूप है बटुक भैरव का। भैरव के वैसे तो आठ रूप है जिसमे बटुक रूप एक चैदह-पन्द्रह साल के बालक का है। भैरव की प्रसन्नता के लिए श्री बटुक भैरव मूल मंत्र का पाठ करना शुभ होता है ।
शनि के प्रकोप का शमन भैरव की आराधना से होता है। भैरवनाथ के व्रत एवं दर्शन-पूजन से शनि की पीडा का निवारण होता है। अनुकम्पा की कामना रखने वाले उनके भक्त तथा शनि की साढेसाती, ढैय्या अथवा शनि की अशुभ दशा से पीडित व्यक्ति कालभैरव भैरवनाथ की उपासना करे तो उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
भैरवजी कलियुग के जाग्रत देवता हैं। भक्ति-भाव से इनका स्मरण करने मात्र से समस्याएं दूर होती हैं। इनका आश्रय ले लेने पर भक्त निर्भय हो जाता है। भैरवनाथ अपने शरणागत की सदैव रक्षा करते हैं
यदि ये प्रयोग 41 दिन तक कर लिया जाये तो व्यक्ति का असम्भव लगने वाला कठिन से कठिन कार्य भी श्री बटुक भैरव की कृपा से अति शीघ्र सिद्ध हो जाता है।
कलियुग में अन्य देवता तो समय आने पर फल देते है पर भगवान वटुक भैरव जिस दिन से इन्हें पूजो उसी दिन से अपना प्रभाव दिखाने लगते है।
बटुक भैरव साधना के नियम व सावधानी,…..
1. यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें।
2. यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है।
3. रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है।
4. भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें।
5. भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए।
6. साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें।
7. हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन-साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें।
8. भैरव को अर्पित नैवेद्य को पूजा के बाद उसी स्थान पर ग्रहण करना चाहिए।
9. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार किया जाता है, जैसे रविवार को चावल-दूध की खीर, सोमवार को मोतीचूर के लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ अथवा गुड़ से बनी लापसी या लड्डू, बुधवार को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को तले हुए पापड़, उड़द के पकौड़े या जलेबी का भोग लगाया जाता है।
इस साधना से बटुक भैरव प्रसन्न होकर सदा साधक के साथ रहते हैं और उसे सुरक्षा प्रदान करते हैं अगाल मौत से बचाते हैं। ऐसे साधक को कभी धन की कमी नहीं रहती और वह सुखपूर्वक वैभवयुक्त जीवन- यापन करता है। जो साधक बटुक भैरव की निरंतर साधना करता है तो भैरव बींब रूप में उसे दर्शन देकर उसे कुछ सिद्धियां प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से साधक लोगों का भला करता है।
रविवार एवं मंगलवार को भैरव की उपासना का दिन माना गया है। कुत्ते को इस दिन मिष्ठान खिलाकर दूध पिलाना चाहिए।
..बटुक भैरव मूल मन्त्र..
“ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धाराणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं स्वाहा”
विधि- आटे की लोई का दिया बनाकर तिल के तेल का दीपक जलाएं उक्त मन्त्र का 108 बार जाप करके दिया बाहर रखे और एक दोने में 4 मुट्ठी आटा और एक मुट्ठी शक्कर लेकर पेड़ के तन्ने में रख दे | बटुक भैरव मन्त्र का जाप करने से विपत्ति टल जाती है.
..बटुक भैरव मंत्र..
ॐ क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा।
शत्रु बाधा हेतु एक लघु प्रयोग,……..
इस प्रयोग से एक बार से ही शत्रु शांत हो जाता है और परेशान करना छोड़ देता है पर यदि जल्दी न सुधरे तो पांच बार तक प्रयोग कर सकते हैं। ये प्रयोग शनि, राहु एवं केतु ग्रह पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है।
इसके लिए किसी भी मंगलवार या शनिवार को भैरवजी के मंदिर जाएँ और उनके सामने एक आटे का चैमुखा दीपक जलाएं। दीपक की बत्तियों को रोली से लाल रंग लें। फिर शत्रु या शत्रुओं को याद करते हुए एक चुटकी पीली सरसों दीपक में डाल दें। फिर उनका ध्यान कर 21 बार निम्न मन्त्र का जप करते हुए एक चुटकी काले उड़द के दाने दिए में डाले। फिर एक चुटकी लाल सिंदूर दिए के तेल के ऊपर इस तरह डालें जैसे शत्रु के मुंह पर डाल रहे हों। फिर 5 लौंग ले प्रत्येक पर 21 21 जप करते हुए शत्रुओं का नाम याद कर एक एक कर दिए में ऐसे डालें जैसे तेल में नहीं किसी ठोस चीज में गाड़ रहे हों। इसमें लौंग के फूल वाला हिस्सा ऊपर रहेगा। फिर इनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करते हुए प्रणाम कर घर लौट आएं।
..श्रीबटुक भैरवाष्टोत्तर शतनामवलि:..
ॐ ह्रीं भैरवो भूतनाथाशच भूतात्मा भूतभावन।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्॥१॥
श्मशान वासी मांसाशी खर्पराशी स्मरांतकः।
रक्तपः पानपः सिद्धः सिद्धिदः सिद्धिसेवित॥२॥
कंकालः कालशमनः कलाकाष्टातनु कविः।
त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च तथा पिंगल-लोचनः॥३॥
शूलपाणिः खङ्गपाणिः कंकाली धूम्रलोचनः।
अभीरूर भैरवीनाथो भूतपो योगिनीपतिः॥४॥
धनदो अधनहारी च धनवान् प्रतिभानवान्।
नागहारो नागपाशो व्योमकेशः कपालभृत्॥५॥
कालः कपालमाली च कमनीयः कलानिधिः।
त्रिलोचनो ज्वलन्नेत्रः त्रिशिखी च त्रिलोचनः॥६॥
त्रिनेत्र तनयो डिम्भशान्तः शान्तजनप्रियः।
बटुको बहुवेशश्च खट्वांगो वरधारकः॥७॥
भूताध्यक्षः पशुपतिः भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शूरो हरिणः पांडुलोचनः॥८॥
प्रशांतः शांतिदः शुद्धः शंकर-प्रियबांधवः।
अष्टमूर्तिः निधीशश्च ज्ञान-चक्षुः तपोमयः॥९॥
अष्टाधारः षडाधारः सर्पयुक्तः शिखिसखः।
भूधरो भुधराधीशो भूपतिर भूधरात्मजः॥१०॥
कंकालधारी मुण्डी च नागयज्ञोपवीतवान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी मारणः क्षोभणः तथा॥११॥
शुद्धनीलांजन प्रख्यो दैत्यहा मुण्डभूषितः।
बलिभुग् बलिभुङ्नाथो बालो अबालपराक्रमः॥१२॥
सर्वापित्तारणो दुर्गे दुष्टभूत-निषेवितः।
कामी कलानिधि कान्तः कामिनी वशकृद् वशी॥१३॥
जगद् रक्षा करो अनन्तो माया मंत्र औषधीमयः।
सर्वसिद्धिप्रदो वैद्यः प्रभविष्णुः करोतु शम्॥१४॥
॥ इति श्री बटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामं समाप्तम् ॥
नोट,.. भैरव एक जाग्रत देव है, इनकी पूजा किसी विशेषज्ञ के दिशानिर्देशन में ही करें,
.
भैरव स्त्रोत मंत्र
भैरव जी के अमुक स्त्रोत मंत्र का पाठ करने से जातक जीवन मे सभी समस्याओं से छुटकारा पाता हैं तथा व्यवसाय रोजगार में उन्नति पाता हैं , धन वैभव से सर्व शक्तिशाली बन जाता हैं । इसमे कोई संदेह नही हैं । शत्रु से छुटकारा, जैल बंधन, पीड़ा ग्रह पीड़ा, रोगों से छुटकारा होता हैं । अखिल सर्व सुखों का उपभोग करता हैं । इस जीवन मे राजा के समान द्रव की प्राप्ति होती है।
आगमोक्त श्रुति कहती है ” भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥ ”
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः।
नमस्कार मंत्र-
ॐ श्री भैरव्यै , ॐ मं महाभैरव्यै , ॐ सिं सिंह भैरव्यै , ॐ धूं धूम्र भैरव्यै, ॐ भीं भीम भैरव्यै , ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै , ॐ वं वशीकरण भैरव्यै , ॐ मों मोहन भैरव्यै |
॥ अष्टभैरव ध्यानम् ॥
असिताङ्गोरुरुश्चण्डः क्रोधश्चोन्मत्तभैरवः ।
कपालीभीषणश्चैव संहारश्चाष्टभैरवम् ॥
.१) असिताङ्ग भैरव ध्यानम्
.रक्तज्वालजटाधरं शशियुतं रक्ताङ्ग तेजोमयंअस्ते शूलकपालपाशडमरुं लोकस्य रक्षाकरम् ।
निर्वाणं शुनवाहनन्त्रिनयनं अनन्दकोलाहलं
वन्दे भूतपिशाचनाथ वटुकं क्षेत्रस्य पालं शिवम् ॥ १ ॥
.२) रूरुभैरव ध्यानम्
.निर्वाणं निर्विकल्पं निरूपजमलं निर्विकारं क्षकारंहुङ्कारं वज्रदंष्ट्रं हुतवहनयनं रौद्रमुन्मत्तभावम् ।
भट्कारं भक्तनागं भृकुटितमुखं भैरवं शूलपाणिं
वन्दे खड्गं कपालं डमरुकसहितं क्षेत्रपालन्नमामि॥ २ ॥
.३) चण्डभैरव ध्यानम्
.बिभ्राणं शुभ्रवर्णं द्विगुणदशभुजं पञ्चवक्त्रन्त्रिणेत्रं
दानञ्छत्रेन्दुहस्तं रजतहिममृतं शङ्खभेषस्यचापम् ।
शूलं खड्गञ्च बाणं डमरुकसिकतावञ्चिमालोक्य मालां सर्वाभीतिञ्च दोर्भीं भुजतगिरियुतं भैरवं सर्वसिद्धिम् ॥ ३ ॥
.४) क्रोधभैरव ध्यानम्
.उद्यद्भास्कररूपनिभन्त्रिनयनं रक्ताङ्ग रागाम्बुजं
भस्माद्यं वरदं कपालमभयं शूलन्दधानं करे ।
नीलग्रीवमुदारभूषणशतं शन्तेशु मूढोज्ज्वलं
बन्धूकारुण वास अस्तमभयं देवं सदा भावयेत् ॥ ४ ॥
.५) उन्मत्तभैरव ध्यानम्
.एकं खट्वाङ्गहस्तं पुनरपि भुजगं पाशमेकन्त्रिशूलं
कपालं खड्गहस्तं डमरुकसहितं वामहस्ते पिनाकम् ।
चन्द्रार्कं केतुमालां विकृतिसुकृतिनं सर्वयज्ञोपवीतं
कालं कालान्तकारं मम भयहरं क्षेत्रपालन्नमामि ॥ ५ ॥
.६) कपालभैरव ध्यानम्
.वन्दे बालं स्फटिक सदृशं कुम्भलोल्लासिवक्त्रं
दिव्याकल्पैफणिमणिमयैकिङ्किणीनूपुनञ्च ।
दिव्याकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं द्विनेत्रं
हस्ताद्यां वा दधानान्त्रिशिवमनिभयं वक्रदण्डौ कपालम् ॥ ६ ॥
.७) भीषणभैरव ध्यानम्
.त्रिनेत्रं रक्तवर्णञ्च सर्वाभरणभूषितम्
कपालं शूलहस्तञ्च वरदाभयपाणिनम् ।
सव्ये शूलधरं भीमं खट्वाङ्गं वामकेशवम् ॥ रक्तवस्त्रपरिधानं रक्तमाल्यानुलेपनम् ।
नीलग्रीवञ्च सौम्यञ्च सर्वाभरणभूषितम् ॥
नीलमेख समाख्यातं कूर्चकेशन्त्रिणेत्रकम् ।
नागभूषञ्च रौद्रञ्च शिरोमालाविभूषितम् ॥
नूपुरस्वनपादञ्च सर्प यज्ञोपवीतिनम् ।
किङ्किणीमालिका भूष्यं भीमरूपं भयावहम् ॥ ७ ॥
.८) संहार भैरव ध्यानम्
.एकवक्त्रन्त्रिणेत्रञ्च हस्तयो द्वादशन्तथा ।
डमरुञ्चाङ्कुशं बाणं खड्गं शूलं भयान्वितम् ॥
धनुर्बाण कपालञ्च गदाग्निं वरदन्तथा ।
वामसव्ये तु पार्श्वेन आयुधानां विधन्तथा ॥
नीलमेखस्वरूपन्तु नीलवस्त्रोत्तरीयकम् ।
कस्तूर्यादि निलेपञ्च श्वेतगन्धाक्षतन्तथा ॥
श्वेतार्क पुष्पमालां त्रिकोट्यङ्गण सेविताम् ।
सर्वालङ्कार संयुक्तां संहारञ्च प्रकीर्तितम् ॥ ८ ॥
इति श्री भैरव स्तुति निरुद्र कुरुते l
1 review for Kashi Kaal Bhairav Kawach