Parvati Mangal (with meaning)

6.00

113 SriGoswamiTulsidasJiVirchit Parvati Mangal (with meaning in Hindi ) by Gita Press, Gorakhpur

जानकी-मंगल में जिस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम के साथ जगज्जननी जानकी के मंगलमय विवाहोत्सवका वर्णन है, उसी प्रकार पार्वती मंगल में प्रात:स्मरणीय गोस्वामीजी ने देवाधिदेव भगवान् शंकर के द्वारा जगदम्बा पार्वती के कल्याणमय पाणिग्रहण का काव्यमय एवं रसमय चित्रण किया है। लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम एवं राधा-कृष्ण अथवा रुक्मिणी-कृष्ण की भाँति ही गौरी-शंकर भी हमारे परमाराध्य एवं परम वन्दनीय आदर्श दम्पति हैं।

रामचरितमानस की भाँति यहाँ भी शिव-बरात के वर्णन में गोस्वामी जी ने हास्यरस का अत्यन्त मधुर पुट दिया है और अन्त र्मे विवाह एवं विदाई का बड़ा ही मार्मिक एवं रोचक वर्णन करके इस छोटे-से काव्य का उपसंहार किया है।

113 SriGoswamiTulsidasJiVirchit Parvati Mangal (with meaning in Hindi ) by Gita Press, Gorakhpur

जानकी-मंगल में जिस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम के साथ जगज्जननी जानकी के मंगलमय विवाहोत्सवका वर्णन है, उसी प्रकार पार्वती मंगल में प्रात:स्मरणीय गोस्वामीजी ने देवाधिदेव भगवान् शंकर के द्वारा जगदम्बा पार्वती के कल्याणमय पाणिग्रहण का काव्यमय एवं रसमय चित्रण किया है। लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम एवं राधा-कृष्ण अथवा रुक्मिणी-कृष्ण की भाँति ही गौरी-शंकर भी हमारे परमाराध्य एवं परम वन्दनीय आदर्श दम्पति हैं। लक्ष्मी, सीता, राधा एवं रुक्मिणी की भाँति ही गिरिराज किशोरी पार्वती भी अनादि काल से हमारी पतिव्रताओं के लिये परमादर्श रही हैं; इसीलिये हिंदू कन्याएँ, जब से वे होश सँभालती हैं, तभी से मनोऽभिलषित वर की प्राप्ति के लिये गौरीपूजन किया करती हैं। जगज्जननी जानकी तथा रुक्मिणी भी स्वयंवर से पूर्व गिरिजा-पूजन के लिये महल से बाहर जाती हैं तथा वृषभानु किशोरी भी अन्य गोप-कन्याओं के साथ नन्दकुमार को पतिरूप में प्राप्त करने के लिये हेमन्त ऋतु में बड़े सबेरे यमुना-स्नान करके वहीं यमुना-तट पर एक मास तक भगवती कात्यायनी की बालुकामयी प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं ।

जगदम्बा पार्वती ने भगवान् शंकर-जैसे निरन्तर समाधि में लीन रहनेवाले, परम उदासीन वीतराग-शिरोमणि को कान्तरूप में प्राप्त करने के लिये कैसी कठोर साधना की, कैसे-कैसे क्लेश सहे, किस प्रकार उनके आराध्य देव ने उनके प्रेम की परीक्षा ली और अन्त में कैसे उनकी अदम्य निष्ठा की विजय हुई – यह इतिहास एक प्रकाश स्तम्भ की भाँति भारतीय बालिकाओं को पातिव्रत्य के कठिन मार्ग पर अडिग रूप से चलने के लिये प्रबल प्रेरणा और उत्साह देता रहा है और देता रहेगा। परम पूज्य गोस्वामीजी ने अपनी अमर लेखनी के द्वारा उनकी तपस्या एवं अनन्य निष्ठा का बड़ा ही हृदय ग्राही एवं मनोरम चित्र खींचा है, जो पाश्चात्त्य शिक्षा के प्रभाव से पाश्चात्त्य आदर्शों के पीछे पागल हुई हमारी नव शिक्षिता बीमारियों के लिये एक मनन करने योग्य सामग्री उपस्थित करता है। रामचरितमानस की भाँति यहाँ भी शिव-बरात के वर्णन में गोस्वामी जी ने हास्यरस का अत्यन्त मधुर पुट दिया है और अन्त र्मे विवाह एवं विदाई का बड़ा ही मार्मिक एवं रोचक वर्णन करके इस छोटे-से काव्य का उपसंहार किया है।

गोस्वामी की अन्य रचनाओं की भाँति उनकी यह अमर कृति भी रस एवं भक्ति-रस से छलक रही है।

 

Weight 35 g
Dimensions 20.5 × 13.5 cm

Brand

Geetapress Gorakhpur

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