SRI TANTRA LOK Published by Sampuranand Sanskrit University, Varanasi
YOGATANTRA-GRANTHAMĀLĀ [Vol. 17]
ŚRĪ TANTRĀ LOKA MAHĀMĀHEŚVARA ŚRĪ ABHINAVA OF GUPTAPĀDĀCĀRYA
With the Commentary ‘VIVEKA’ BY ACARYA ŚRĪ JAYARATHA ‘NĪRAKŞĪRAVIVEKA’| BY DR. PARAMHANS MISHRA ‘HANS’
FOREWORD BY PROF. RAMMURTI SHARMA VICE-CHANCELLOR| EDITED BY DR. PARAMHANS MISHRA ‘HANS’
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
योगतन्त्र – ग्रन्थमाला | १७ ।
महामाहेश्वरश्रीमदभिनवगुप्तपादाचार्यविरचितः
श्रीतन्त्रालोकः
श्रीमदाचार्यजयरथकृतया ‘विवेक’ व्याख्यया | डॉ. परमहंसमिश्रकृतेन ‘नीरक्षीरविवेक’ – हिन्दी भाष्येण|कुलपतेः प्रो. राममूर्तिशर्मणः प्रस्तावनया च विभूषितः
सम्पादकः डॉ. परमहंसमिश्रः ‘हंसः’
श्रीतन्त्रालोक भारतीय समाज के लिये आलोकस्तम्भ के समान सजग भाव से नवजीवन को अभिनव ज्योति से ज्योतिष्मान् बनाने में सक्षम है। अध्येताओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि श्रीतन्त्रालोक के आलोक से उनका जीवन आलोकललित हो रहा है।
श्रीतन्त्रालोक के स्वाध्याय की आज अत्यन्त आवश्यकता है। यह एकमात्र ऐसा आगमिक उपनिषद् है, जिसमें भारतीय साधना को नये आयाम से मण्डित किया गया है। नश्वर को अविनश्वर में, स्थूल को सूक्ष्म में इदम् को अहम् में, सङ्कोच को विकास में, जीव को शिव में समाहित होने की केवल देशना का ही निर्देश इसने नहीं दिया है,
वरन् विधि में उतार कर पगडण्डियों को राजमार्ग में बदल दिया है। यह केवल कथन में विश्वास नहीं करता, वरन् कथन को साधकतम करण प्रदान करता है। यह प्रश्न का उत्तर मात्र नहीं देता, वरन् प्रश्नकर्ता को ऐसी विधि बताता है कि, इस विधि में उतरो और प्रश्न का स्वयम् उत्तर प्राप्त कर लो।
यह जीवन की सङ्कोचमयी अणुता को, शक्ति से समन्वित शाक्तता को ज्यों के त्यों रूप में सत्य मानकर शाश्वत सत्य की प्राप्ति हेतु आणव, शाक्त और शाम्भव उपायों से उपेय को पा लेने के अध्यवसाय की देशना देकर ही शान्त नहीं होता, वरन् उसे अनुपाय विज्ञान की परमोपेय वैज्ञानिकता का सन्देश भी देता है।
विज्ञान और उपाय के सामरस्य में समरस रहकर व्यष्टि से समष्टि को संस्कारसम्पन्न बनाने का लक्ष्य इस आगमिक मन्त्र से मिल जाता है। जीवन के सङ्कोच कल्मष को निरस्त कर जन्म-जन्मान्तरीय वायु में परम ध्येय को पिरो कर अजपा-जप में निरत रहकर जीव को शिवभाव में समाहित होने की देशना विधि से परमशिव को उपलब्ध होने की प्रेरणा यह ग्रन्थ दे रहा है।
गति-स्थान, स्वप्न-जाग्रत्, उन्मेष-निमेष, धावन और प्लवन, आयास और शक्तिवेदन के द्वन्द्व से जीवन को निकाल कर निर्द्वन्द्र महाभाव में विश्व को बिठलाने के लिये तन्त्रालोक एक हजार साल से आपका आवाहन कर रहा है। यह इसकी महनीयता है।
श्रीतन्त्रालोक में ये सारे तथ्य अक्षमाला की मणियों की तरह ग्रथित हैं। केवल एक खण्ड का स्वाध्याय भी विभ्रान्त पथिक को उसकी मंजिल उपलब्ध करा देने में सक्षम है।
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