M.M. SUDHAKARADVIVEDĪ-GRANTHAMĀLĀ [Vol. 6]
VĀSTUSĀRASANGRAHA With the Hindi Commentary
FOREWORD BY PROF. YADUNATH PRASAD DUBEY VICE-CHANCELLOR
WRITTEN & EDITED BY ACARYA ŚRĪ KAMALĀKĀNTA SUKLA Ex-Sammanita-Acarya Sampurnanand Sanskrit Vishvavidyalaya Varanasi
वास्तुसारसङ्ग्रहः [हिन्दीव्याख्यया समलङ्कृतः]
कुलपतेः प्रो. यदुनाथप्रसाददुबेमहोदयस्य प्रस्तावनया विभूषितः
लेखकः सम्पादकश्च आचार्य श्रीकमलाकान्तशुक्लः
सम्पूर्णानन्द – संस्कृत विश्वविद्यालयः वाराणसी
इस समय पण्डित कमलाकान्त जी शुक्ल संस्कृत जगत् के वरिष्ठतम विद्वानों में उम्र में लगभग सबसे बड़े हैं। अभी भी स्वाध्याय, अध्यापन में पूर्ववत् लगे हुए हैं। त्रिस्कन्ध ज्योतिष के वे निष्णात पण्डित हैं और वास्तुशास्त्र के विरल विद्वान् हैं। वे जिन ग्रन्थों का सम्पादन, प्रणयन आदि करते हैं, उसकी व्याख्या भी प्रस्तुत करते हैं। वास्तुशास्त्र के ग्रन्थों की व्याख्या बहुत ही कठिन कार्य है।
इसके पूर्व श्री शुक्ल जी द्वारा ‘संग्रहशिरोमणिः’ (भाग-एक, दो), ‘वास्तुसौख्यम्’, ‘लघुपाराशरीटीका’, ‘जैमिनिसूत्रम् (यन्त्रालयस्थ) आदि ग्रन्थ सम्पादित, प्रणीत और संकलित किये गये हैं । काशी की परम्परा में ‘जैमिनिसूत्रम्’ के प्रारम्भ के दो ही अध्याय प्रकाश में रहे हैं; किन्तु श्री शुक्ल जी दक्षिण भारत की परम्परा के दो अध्याय और जोड़कर इस समग्र ग्रन्थ को चार अध्यायों में प्रकाशित करा रहे हैं ।
सृष्टि के कण-कण में परम तत्त्व व्याप्त है, यह भारतीय चिन्तनः की मान्यता है। ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ इस सिद्धान्त का आधार लेकर निगम एवं आगम की उपासना प्रवर्तित है। उपासना की चरम परिणति में सर्वत्र एकत्व आभासित होता है, जो अद्वैतसिद्धि का स्वरूप है। भक्तशिरोमणि तुलसीदास जी ने भी “सियाराममय सब जग जानी । करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी” ॥ कहकर उक्त भाव को अभिव्यक्त किया है।
तत्त्ववेत्ता तपःपूत ऋषि-मुनि-महात्माओं ने विश्वकल्याण की भावना से भावित होकर अनेक शास्त्रों का आविर्भाव किया, जिनमें वास्तुशास्त्र अन्यतम है। वास्तुशास्त्र एक विज्ञानपूर्ण विद्या है, जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष दृष्ट है। यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् तथा वास्तुशास्त्र के मर्मज्ञ मनीषी राष्ट्रपति सम्मानित आचार्य पं. कमलाकान्त शुक्ल जी ने “वास्तुसारसङ्ग्रह” नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया है तथा राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनुवाद कर साहित्य की श्रीवृद्धि की है। इस ग्रन्थ की विषय-वस्तु से भारतीय ऋषियों एवं आचार्यों की महनीय व्यापक दृष्टि एवं तत्त्वविचार की सूक्ष्मेक्षिका अवभासित है, जो अन्यत्र संस्कृतियों में दुर्लभ है।
इस महनीय ग्रन्थ के प्रकाशन से अनुसन्धाताओं, विद्वानों एवं जनसामान्य को समान रूप से लाभ होगा।
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