YOGA VIDYA-VIMARŚA योगविद्या-विमर्श (संस्कृतवाङ्‌मयाधारित योगानुशासन)

300.00

Yog Vidya Vimarsh by Prof. Vimala Karnataka

Published by : Sampurnanand Sanskrit University, VARANASI

योगविद्या-विमर्श (संस्कृतवाङ्‌मयाधारित योगानुशासन)

कुलपति प्रो. अशोक कुमार कालिया जी की प्रस्तावना से विभूषित

लेखिका एवं सम्पादिका प्रो० (सुश्री) विमला कर्नाटक
सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी

योगविद्या-विमर्श नामक प्रस्तुत ग्रन्थ एक ऐसा योगार्णव है, जिसमें वैदिक युग से लेकर दर्शनयुग तक संस्कृत-ग्रन्थों में प्रवाहित निरवच्छिन्न योग-धाराओं का सिद्धान्तगत एवं व्यवहारगत विश्लेषणात्मक समन्वय स्थापित कर ऋषि-मुनियों की योगवाणी को आत्मसात् करने का प्रयास किया गया है।

Pages : 380

YOGAVIDYA-VIMARŚA

FOREWORD BY PROF. ASHOK KUMAR KALIA VICE-CHANCELLOR

WRITTEN & EDITED BY

PROF. VIMALĀ KARNĀȚAKA

Head, Sanskrit Department, Mahila Mahavidyalaya Banaras Hindu University, Varanasi

LIGHTS OF UNIVERSITY GOLDEN JUBILEE YEAR

UNIVERSITY-SILVERJUBILEE-GRANTHAMĀLĀ [Vol. 50 ]

विश्वविद्यालय-स्वर्णजयन्ती-वर्ष में प्रस्फुटित

योगविद्या-विमर्श (संस्कृतवाङ्‌मयाधारित योगानुशासन)

कुलपति प्रो. अशोक कुमार कालिया जी की प्रस्तावना से विभूषित

लेखिका एवं सम्पादिका प्रो० (सुश्री) विमला कर्नाटक

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी

योगविद्या-विमर्श

योगविद्या की महनीयता; सर्वशास्त्रों में योगर्षियों की मुखरित शाश्वत एवं चिरन्तन ज्ञाननिधि से प्रमाणित है। भारतीय मान्यता के अनुसार योगविद्या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की प्रायोगिक अध्यात्म-सम्पदा है। योगविज्ञान के समाराधक आचार्यजन अपनी अन्तः शक्ति का उपयोग आत्मचेतना के परिष्कार, विकास एवं लोकजागृति के लिये करते रहे। भारत के विकास एवं उसकी समृद्धि की कथा; आन्तरिक उत्थान के विचार एवं योग के मूल में निहित एक विराट्, व्यापक एवं उच्चतर शक्ति की स्तवनिका है। सुमन में निहित सुगन्धि की भाँति यह समस्त शास्त्रों के प्रणेताओं के सुमनात्मक अन्तःकरण से सृजित योगात्मक सुगन्धि का पर्यायस्वरूप है।

अतः अनुसन्धान के रूप में इसका व्यावहारिक उपयोग उतना ही उत्तम है, जितना इसके वाङ्मय में प्रतिपादित सैद्धान्तिक तत्त्वों का। योगविज्ञान एक ऐसा आध्यात्मिक सेतुबन्ध है, जिसने प्रेय को श्रेय से, जीवन को मोक्ष से, नर को नारायण से, मृन्मय को चिन्मय से, सिद्धान्त को व्यवहार से, जिज्ञासु को ज्ञाता से, स्फुलिङ्ग को अग्नि से, नदी को समुद्र से, वाष्प को मेघराशि से, बद्धता को उन्मुक्तता से, शरीर को मन से, मन को इन्द्रियों से, पुरुष को पुरुषविशेष से, प्रतिबिम्ब को बिम्ब से, हृदयदौर्बल्य को आत्मबल से समन्वित करते हुए विश्वपटल पर अद्भुत घटना के रूप में अपने को प्रस्तुत किया है।

योगविद्या-विमर्श नामक प्रस्तुत ग्रन्थ एक ऐसा योगार्णव है, जिसमें वैदिक युग से लेकर दर्शनयुग तक संस्कृत-ग्रन्थों में प्रवाहित निरवच्छिन्न योग-धाराओं का सिद्धान्तगत एवं व्यवहारगत विश्लेषणात्मक समन्वय स्थापित कर ऋषि-मुनियों की योगवाणी को आत्मसात् करने का प्रयास किया गया है। क्या श्रीराम की सत्यप्रतिज्ञता, अर्जुन की धनुर्धरता, श्रीकृष्ण की सद्‌गुणधारकता, ययाति की धार्मिकता, बलि की धैर्यशीलता, शङ्कर की आशुतोषता, प्रह्लाद की निष्ठता, शुकदेव की वक्तृशक्तिता, परीक्षित की उत्सुकता, नचिकेता की पितृभक्तिता तथा मातृशक्ति की सहनशीलता योगशक्ति से अभिमन्त्रित नहीं रही?

वचन है – या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। श्रीमद्भगवद्‌गीता-२/६९

Weight 616 g
Dimensions 22 × 13.5 × 2.75 cm

Brand

Sampurnanand Sanskrit University

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