30 Sri Prem Sudha Sagar by Gita Press, Gorakhpur
(भगवान् वेदव्यास कृत श्रीमद्भागवत’ के केवल दशम स्कन्ध की श्लोकाडूसहित और विविध टिप्पणियों से समन्वित सरल हिन्दी व्याख्या )
Simple Hindi Interpretation of Lord Ved Vyasa krita Shrimad Bhagavatam with Shlokang of the tenth wing and integrated with various commentaries.
श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। वैष्णवों का तो यह सर्वस्व ही है। भारतवर्ष में जितने भी वैष्णव-सम्प्रदाय प्रचलित हैं, उन सभी में श्रीमद्भागवत का वेदों के समान आदर है। कई आचार्यों ने तो प्रस्थानत्रयी के अन्तर्गत उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रों के साथ इसी को तीसरा प्रस्थान माना है। इसे वेद-महोदधिका अमृत कहें तो कोई अत्युक्ति न होगी-‘वेदोपनिषदां साराज्जाता भागवती कथा।’ बल्कि पद्मपुराणान्तर्गत श्रीमद्भागवत-माहात्म्य में स्वयं सनकादि परमर्षियों ने प्रणव, गायत्री मन्त्र, वेदत्रयी, श्रीमद्भागवत और भगवान् पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण-इसका तत्त्वतः अभेद बतलाया है। इसे भगवान् श्रीकृष्ण का साक्षात् वाङ्मय-स्वरूप माना गया है भगवान्के कलावतार श्री वेदव्यास जी-जैसे अद्वितीय महापुरुष को जिसकी रचना से ही शान्ति मिली, उस श्रीमद्भागवत की महिमा कहाँ तक कही जाय। इसमें प्रेम, भक्ति, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य आदि कूट-कूटकर भरे हैं। इसका एक-एक श्लोक मन्त्रवत् माना जाता है। इसी से इसका धर्मप्राण जनता में इतना आदर है।
उसमें भी दशम स्कन्ध तो उसका हृदय स्थानीय है उसमें भागवतके परम प्रतिपाद्य श्रीकृष्ण की-जिनका उल्लेख इसी ग्रन्थ में ‘कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्’ कहकर हुआ है-मधुरातिमधुर लीलाओं का परम मनोहर ढंग से वर्णन हुआ है। कहते हैं-महान् योगी परमहंसशिरोमणि श्रीशुकमुनिका-जो इस भागवत-ग्रन्थके वक्ता हैं तथा जो जन्म से ही भगवान्के निर्गुण-स्वरूप में परिनिष्ठित थे एवं प्रपञ्चसे सर्वथा अलग रहकर वन में विचरा करते थे इसी दशम स्कन्ध के कतिपय श्लोकों को सुनकर श्रीमद्भागवत की ओर आकर्षण हुआ था और फिर उन्होंने अपने पिता श्री वेदव्यासजी से इस सम्पूर्ण ग्रन्थका अध्ययन किया था। भगवान्के चरित्र ही ऐसे हैं कि बड़े-बड़े योगीन्द्र मुनीन्द्रों का मन बरबस उनकी ओर खिंच जाता है इसीलिये भगवान् श्री कृष्ण का एक नाम है- ‘आत्मारामगणाकर्षी।’ ‘कृष्ण’ का अर्थ ही है आकर्षण करनेवाला। श्रीकृष्ण के कुछ अनन्य उपासक श्रीकृष्णलीला के अतिरिक्त और कुछ भी पढ़ना-सुनना नहीं चाहते। ऐसे लोगों की सुविधा के लिये विशेषतः उन लोगों के लिये संस्कृत से सर्वथा अपरिचित हैं केवल दशम स्कन्ध का यह भाषानुवाद अलग पुस्तक रूप में ‘श्रीप्रेम-सुधा-सागर’ के नाम से पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है। श्रीभगवान्की मधुर लीलाओं के रसास्वादनके लिये तथा लीला-रहस्यको समझने के लिये स्थान-स्थान पर नयी-नयी टिप्पणियाँ भी दी गयी हैं, जिससे ग्रन्थ की उपादेयता विशेष बढ़ गयी है।
कहना न होगा कि दशम स्कन्ध का यह अनुवाद श्रीमद्भागवत के सटीक संस्करण से ही लिया गया है जो दो खण्डोंमें प्रकाशित है। जो लोग किसी कारणवश पूरे ग्रन्थ को नहीं खरीदना चाहते और केवल श्रीकृष्णलीला-चिन्तन के ही अनुरागी हैं, उनके लिये यह ग्रन्थ विशेष उपयोगी होगा। असलमें उन्हीं का जीवन धन्य है, जो दिन रात भगवान्की मधुर लीलाओं के ही अनुशीलन एवं चिन्तनमें लगे रहते हैं।
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