Sri Panchratra Raksha

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Kavitarkiksingh Sri Vedantdeshikacharya Pranit Sri Panchratra Raksha Satyam Shivam Sundaram Named Hindi Text included Translated by Acharya Pt. Chakrapani Trivedi

इस ग्रन्थ में तीन अधिकार हैं।

प्रथमाधिकार में सिद्धान्त की स्थापना है। विशेषत: अभिगमन, उपादान, इज्या, स्वाध्याय और योग ये पाञ्चकालिक ‘उपासना ‘ प्रामाणिक हैं, इसे सिद्ध किया गया है। पाञ्चरात्र को चार भागों में विभक्त किया गया है।

१. आगम सिद्धान्त, २. मन्त्र सिद्धान्त, ३. तन्त्र सिद्धान्त, ४. तन्त्रान्तर सिद्धान्त।

Kavitarkiksingh Sri Vedantdeshikacharya Pranit Sri Panchratra Raksha Satyam Shivam Sundaram Named Hindi Text included Translated by Acharya Pt. Chakrapani Trivedi

पाञ्चरात्ररक्षा के उपोद्घात में श्रीवैद्यरत्न मेल्पाक्कम् दुरैस्वामि अय्यङ्गार ने कृति और कृतिकार सम्बन्ध में अत्यन्त प्रगाढ़ अनुशीलन कर जो विषयवस्तु का प्रतिपादन किया है, वह उनके गहन अध्ययन और भूरिशः प्रयास का प्रतिफल है। इनके इस संस्कृत अंश का भी भाषान्तरण कर सहदय पाठकों को सुलभ कराया गया है।

प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन में अनेक प्राप्त पाण्डुलिपियों एवं प्रकाशित पुस्तकों के प्राप्त संस्करणों एवं पाठान्तरों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन कर उनके यथा संभव शुद्ध स्वरूप संशोधित संस्करण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये विद्वान् मनीषी दोषज्ञ आर्य पी. टी. श्रीनिवास आयंगार की महत्त्वपूर्ण लेख आज के लोगों को कृतार्थ कर रहा है।

प्रतिपाद्य विषय

इस ग्रन्थ में तीन अधिकार हैं।

प्रथमाधिकार में सिद्धान्त की स्थापना है। विशेषत: अभिगमन, उपादान, इज्या, स्वाध्याय और योग ये पाञ्चकालिक ‘उपासना ‘ प्रामाणिक हैं, इसे सिद्ध किया गया है। पाञ्चरात्र को चार भागों में विभक्त किया गया है।

१. आगम सिद्धान्त, २. मन्त्र सिद्धान्त, ३. तन्त्र सिद्धान्त, ४. तन्त्रान्तर सिद्धान्त।

श्री पौष्कर ग्रन्थ में भी अधिकारी निरूपणाध्याय में सिद्धान्त भेद तथा उसके अवान्तर भेद कहे गये हैं, जो प्रति अधिकारी का विषय अन्य अधिकारी से पृथक है। अर्थात् सांकर्यदोष से रहित है। आगम सिद्धान्त में नाना व्यूहों से युक्त द्वादशमूर्तियों का वर्णन है तथा उनकी उपासना कर्तव्य समझ कर करने की विधि है, अत: उसे आगम सिद्धान्त के रूप में जाना जाता है।

२. मन्त्रसिद्धान्त

इस सिद्धान्त में कहा गया है कि मूर्ति के बिना भी मन्त्रों द्वारा उपासना से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। मन्त्र ही उनकी मूर्ति और गण के रूप में विद्यमान हैं। तथा उनकी शक्ति स्वरूपा श्रियादि समूह भी है ऐसा जानना चाहिए।

३. तन्त्र सिद्धान्त

इस सिद्धान्त में भगवान् नारायण के विग्रह, आभूषण और अस्त्रों से युक्त बताया गया है तथा अधिकारी भक्त के लिये उपासना की विधि बतायी गयी है।

४. तन्त्रान्तर सिद्धान्त

भागवतों की भक्ति के अनुसार नारायण के चार स्वरूपों में मुख्य और गौड़ी वृत्ति के भेद से नृसिंहादि केरूप में प्राकट्य अथवा चार, तीन, दो, एक रूप का वर्णन एवं अपने सभी परिवारों के साथ अथवा विना परिवार के भी वर्णन किया गया है।

Weight 372 g
Dimensions 22 × 14.5 × 1.7 cm

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